Monday, 16 September 2019

कसक
 निशा का बयालीसवा  जन्मदिन था, वह मंदिर जाने के लिए तैयार हो रही थी ।उसने अपनी मां की साड़ी पहनी, बड़ी सी बिंदी लगाई और अपने छोटे बाल खींचकर मां की तरह जुड़ा बनाया ।जब आईने में देखा तो लगा मां सामने खड़ी है ,लेकिन उदास लग रही थी ।निशा भी तो मुस्कुरा नहीं रही थी। मां बयालीस साल की थी जब उनकी मृत्यु हुई थी ।निशा की पंद्रह दिन बाद शादी थी ।उसी दिन पिताजी गहने लेकर आए थे, ना जाने लुटेरों को कैसे भनक  लग गई, रात को घर में घुस आए।
 निशा ,उसके पिता और दादी को रस्सी से बांध दिया और मां को बंदूक दिखाकर तिजोरी में से गहने निकालने के लिए कहा। गहनों का डब्बा निकालकर, सीने से लगा मां ने साफ कह दिया वह गहने नहीं देंगी। निशा और उसके पिता चिल्लाते रह गए ," दे दो गहने जान से अधिक कीमती नहीं है ।"लेकिन वह नहीं मानी, छीना झपटी में गोली चली और मां घायल हो गई ।गोली की आवाज सुनकर पड़ोसियों ने शोर मचा दिया, दरवाजा पीटने लगे तो चोर घबरा कर भाग गए ।मां चल बसी नि,को उन गहनों से नफरत सी हो गई ।वह उन्हें हाथ भी नहीं लगाना चाहती थी। लेकिन दादी ने समझाया," इन गहनों को बचाने के लिए बहू ने जान गवा दी और तू अब इन्हें ले जाना नहीं चाहती ।पहले ही तेरा बाप इतना दुखी है  दूसरे कहां से बनवा कर लाएगा ?"शादी चार महीने बाद हुई, लेकिन निशा के दिल में हमेशा कसक रही मां होती तो कुछ और बात होती।

निशा को नियति की इस नाइंसाफी पर  बहुत गुस्सा आता । उसको लगता मां को और जीना चाहिए था, जब तक सारे बाल सफेद  नहीं हो जाते ,कमर झुक नहीं जाती ।अगर मां होती तो नाती पोतों को खिलाती। पिता को इतना अकेलापन नहीं महसूस होता ।इतने सालों बाद भी उसे लगता मां को यह बताना था ,वो पूछना था ,यह दिखाना था ।निशा ने अपनी शादी के गहनों में से पहली बार सोने की चेन निकाल कर पहनी। उसे महसूस हुआ वह  बदल गई है, बालों में इधर-उधर से झांकती सफेदी, गंभीरता ओढ़े चेहरा, लगा वह अपनी मां बन गई है ।जिंदगी के नए पडाव में प्रवेश कर रही थी। अब वह  अपनी मां से बड़ी होती जाएगी, उसके दिमाग में तो मां की बस अब तक की छवि अंकित थी।
 इस बात पर उसे हंसी आ गई ,तो देखा आईने में खड़ी मां भी हंस रही थी ।उसे महसूस हुआ वह  पागल थी, मां तो हमेशा उसके अंदर ही जीवित थी ।वह अपनी मां की तरह काम करती और सोचती थी। मां की बढ़ती उम्र ,बालों का सफेद होना, चेहरों का झुर्रियों से भरना ,वह सब देखेगी और महसूस भी करेगी स्वयं के माध्यम से।

Monday, 9 September 2019

 डायरी
केतकी को गुजरे सात दिन ही हुए थे और सत्यजीत को चिंता होने लगी थी, अकेले इतने बड़े घर में कैसे रहेंगे। चारों बच्चे अपने अपने परिवार के साथ आपने संसार में जाने की तैयारी कर रहे थे। केतकी के जीते जी जब सत्यजित ऑफिस क्लब या दोस्तों के साथ मस्ती करके घर आते थे तो वह इंतजार करती मिलती थी। उनके आते ही आगे पीछे घूमने लगती, कभी पानी तो कभी खाने का आग्रह करती, कुछ ना कुछ बोलती रहती ।वे झुंझला कर  कह देते थे, "आते  ही शुरू हो जाती हो ,थका हुआ आया हूं पर  पहले तुम्हारा बड़बड़ाना सुनूं।"
केतकी को कहीं साथ ले जाने की   आवश्यकता  महसूस नहीं हुई लेकिन अब लग रहा था  केतकी का बोलना याद आएगा  जब रात दिन घर में सन्नाटे का राज होगा। तभी सबसे बड़ी पोती कुछ किताबें  लेकर ड्राइंग रूम में दाखिल हुई जहां सब बैठे थे। उत्साहित होकर बोली ," देखो अम्मा की अलमारी में से कितनी सारी डायरियां निकली है ।"
सत्यजीत ने बहू बेटियों को कह दिया था केतकी का जो सामान वे लेना चाहे ले ले, लेकिन किसी ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।
बड़ा बेटा तपाक से बोला," अरे पुरानी डायरियां होंगी ,मॉम को सामान इकट्ठा करने का बहुत शौक था ।अभी तो और भी न जाने क्या-क्या बेकार की चीजें निकलेंगी।"
 तभी बड़ी बहू ने एक डायरी हाथ में लेकर पन्ने पलटते हुए कहा ," इसमें तो बड़े बड़े शायरों और कवियों की रचनाएं है ,लगता है मम्मी जी को साहित्य में रुचि थी ।आप तो कह रहे थे वे कुल दसवीं पास थी।"
 पुत्री बोली ,"यहां वहां से उतार ली होगी ।अब समय तो बहुत रहता था, कुछ करने को था नहीं ।"
तभी एक दामाद ने दूसरी डायरी के पन्ने पलटते हुए कहा ,"लगता है उन्हें स्वयं भी लिखने का शौक था।' मेरे जज्बात मेरे अल्फाजों की आगोश में'।"
 एक दो पन्ने पढ़ने के बाद वह बोला," बहुत सुंदर लिखा है, एक औरत की छटपटाहट और आकांक्षाओं का  बहुत सूक्ष्मता से वर्णन  किया है।"
 सत्यजीत हड़बड़ा कर बोले," छटपटाहट कैसी ?सब तो था उसके पास, इतना बड़ा घर ,बच्चे ,पैसों की कभी कोई कमी नहीं छोड़ी थी मैंने।"
 दूसरी पुत्री  दुखी स्वर में बोली ,"लेकिन उनके कोमल मन में हम सब ने कभी नहीं झांका। सब अपनी अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने में लगे रहे ।"
सत्यजीत को भी महसूस हुआ कि चालीस  साल  के वैवाहिक जीवन में वे अपनी पत्नी को कितना जान और समझ पाए ।उसके व्यक्तित्व के एक हिस्से से तो वे बिलकुल अनजान थे।
वह दमाद अभी भी डायरी पढ़ने में लगा हुआ था ,बोला," मैं अपने एक मित्र को यह  डायरी दिखाता हूं ,उसे साहित्य का अच्छा  ज्ञान है ।उसके सहयोग से मैं मम्मी जी की रचनाओं  की किताब छपवाऊंगा ।यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।"
सत्यजीत सिर झुकाए बैठे थे उनकी हिम्मत नहीं हुई दमाद से वह  डायरी मांग ले जिसमें उनकी पत्नी की रुह थी।

Monday, 2 September 2019

 क्या मैं बेवकूफ हूं
दो-तीन दिन से हरारत थी, लेकिन ललिता नजरअंदाज करती रही, बेकार घर में सब परेशान हो जाएंगे। उस दिन जब बिल्कुल नहीं उठा गया तो पति ऑफिस जाने से पहले अपने डॉक्टर दोस्त के पास दिखाने ले गए। डाक्टर ने यह कहकर अस्पताल में भर्ती कर लिया कि एक बार सारे टेस्ट करवा लेते हैं ,इस उम्र में सही रहता है। पति ऑफिस चले गए और ललिता को लेटे एक घंटा भी नहीं हुआ था कि उसकी बहू आई। आते ही झुंझला कर बोली," क्या मम्मी जी जरा से बुखार में अस्पताल में एडमिट हो गई। कितनी परेशानी हो गई है, एकदम से छुट्टी लेनी पड़ी मुझे। मिनी भी हैरान हो रही है।"
मिनी ललिता की दो साल की पोती थी जिसको बहु के  ऑफिस जाने के बाद ललिता ही संभालती थी।
ललिता शांत स्वर में बोली ,"बेटा दो-तीन दिन की बात है, थोड़ा एडजस्ट कर लो।" लेकिन बहू अपनी धुन में बोलती रही," एक आपने दादा जी और दादी जी को भी शुरू से अपने पल्ले बांध रखा है। सारा दिन उनकी बातें और काम ही खत्म नहीं होते हैं। ऊपर चाची जी भी तो रहती हैं वह भी तो उनकी सेवा कर सकती हैं।"
 बहू ने कुछ देर और भड़ास निकाली फिर चली गई ।आई थी ललिता की तबीयत पूछने के लिए लेकिन जल्दबाजी में पूछना ही भूल गई। आंख लगी ही थी कि सासु मां आ गई। आते ही गुस्से में बोली ,"तूने अपनी बहू को बहुत सिर चढ़ा रखा है। सारा दिन दरवाजे और पैर  पटक पटक कर काम कर रही है। दो रोटी क्या सेंक कर दे रही है, एहसान जता रही है।वह बस चाहती है  हम दोनों मर जाएं और तू  उसकी सेवा करती रहे।"
ललिता धीरे से बोली ,"बच्ची का साथ है ,काम की ज्यादा आदत नहीं है बहू को । आज आप खाना बना लेती।" सास भड़क गई ,"अब तू अपनी बहू की बोली मत बोल।"
 और जितनी देर बैठे रही बहु की बुराई करती रही ।ललिता को चिंता हो रही थी उसके पीछे से दोनों में ज्यादा कहासुनी हो गई तो उसे ही दोनों को शांत करने में मेहनत करनी पड़ेगी।

 फिर देवरानी आई देखने ।दो चार इधर की बातें कर  बोली," आपको भी भाभी जी भलाई लेने का कुछ अधिक ही शौक है ।अरे उतना ही करना चाहिए जितना शरीर झेल सके। सबके सामने आदर्श बहू का खिताब जीतने के चक्कर में आपने अपना हाल बेहाल कर रखा है।"
 ललिता आश्चर्य से बोली," तुमसे एक दिन बनी नहीं माजी की, तो फिर क्या करते ? बुजुर्ग मां-बाप की  कोई तो करेगा ही।"
 देवरानी हाथ  मटका कर बोली ,"अरे हर समय बैठा कर खिलाओ यह  किसने कहा आपसे ? बुढ़िया को कुछ करने को कहा करो ।खैर जो करेगा उसे ही मिलेगा  इस आस में सेवा करते रहो।"ललिता तिलमिलाकर बोली," तुम भी अच्छी तरह जानती हो उनके पास देने को कुछ नहीं बचा है ।दो मंजिला मकान वे पहले ही  देवरजी और इनके नाम कर चुके हैं ।जो पेंशन आती है वह भी कम  पड़ती है।" देवरानी चलते हुए अकड़ कर बोली," जो भी है मैं इतनी बेवकूफ नहीं सारे दिन ताने भी सुनती रहूं और उनकी सेवा भी करू।"
 ललिता उसको जाते हुए देख सोचने लगी पता नहीं कब
से जिम्मेदारियों को निभाने वाले और ग्रह शांति को महत्व देने वाले बेवकुफों की सूची में आने लगें हैं। 

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