क्या मैं बेवकूफ हूं
दो-तीन दिन से हरारत थी, लेकिन ललिता नजरअंदाज करती रही, बेकार घर में सब परेशान हो जाएंगे। उस दिन जब बिल्कुल नहीं उठा गया तो पति ऑफिस जाने से पहले अपने डॉक्टर दोस्त के पास दिखाने ले गए। डाक्टर ने यह कहकर अस्पताल में भर्ती कर लिया कि एक बार सारे टेस्ट करवा लेते हैं ,इस उम्र में सही रहता है। पति ऑफिस चले गए और ललिता को लेटे एक घंटा भी नहीं हुआ था कि उसकी बहू आई। आते ही झुंझला कर बोली," क्या मम्मी जी जरा से बुखार में अस्पताल में एडमिट हो गई। कितनी परेशानी हो गई है, एकदम से छुट्टी लेनी पड़ी मुझे। मिनी भी हैरान हो रही है।"
मिनी ललिता की दो साल की पोती थी जिसको बहु के ऑफिस जाने के बाद ललिता ही संभालती थी।
ललिता शांत स्वर में बोली ,"बेटा दो-तीन दिन की बात है, थोड़ा एडजस्ट कर लो।" लेकिन बहू अपनी धुन में बोलती रही," एक आपने दादा जी और दादी जी को भी शुरू से अपने पल्ले बांध रखा है। सारा दिन उनकी बातें और काम ही खत्म नहीं होते हैं। ऊपर चाची जी भी तो रहती हैं वह भी तो उनकी सेवा कर सकती हैं।"
बहू ने कुछ देर और भड़ास निकाली फिर चली गई ।आई थी ललिता की तबीयत पूछने के लिए लेकिन जल्दबाजी में पूछना ही भूल गई। आंख लगी ही थी कि सासु मां आ गई। आते ही गुस्से में बोली ,"तूने अपनी बहू को बहुत सिर चढ़ा रखा है। सारा दिन दरवाजे और पैर पटक पटक कर काम कर रही है। दो रोटी क्या सेंक कर दे रही है, एहसान जता रही है।वह बस चाहती है हम दोनों मर जाएं और तू उसकी सेवा करती रहे।"
ललिता धीरे से बोली ,"बच्ची का साथ है ,काम की ज्यादा आदत नहीं है बहू को । आज आप खाना बना लेती।" सास भड़क गई ,"अब तू अपनी बहू की बोली मत बोल।"
और जितनी देर बैठे रही बहु की बुराई करती रही ।ललिता को चिंता हो रही थी उसके पीछे से दोनों में ज्यादा कहासुनी हो गई तो उसे ही दोनों को शांत करने में मेहनत करनी पड़ेगी।
फिर देवरानी आई देखने ।दो चार इधर की बातें कर बोली," आपको भी भाभी जी भलाई लेने का कुछ अधिक ही शौक है ।अरे उतना ही करना चाहिए जितना शरीर झेल सके। सबके सामने आदर्श बहू का खिताब जीतने के चक्कर में आपने अपना हाल बेहाल कर रखा है।"
ललिता आश्चर्य से बोली," तुमसे एक दिन बनी नहीं माजी की, तो फिर क्या करते ? बुजुर्ग मां-बाप की कोई तो करेगा ही।"
देवरानी हाथ मटका कर बोली ,"अरे हर समय बैठा कर खिलाओ यह किसने कहा आपसे ? बुढ़िया को कुछ करने को कहा करो ।खैर जो करेगा उसे ही मिलेगा इस आस में सेवा करते रहो।"ललिता तिलमिलाकर बोली," तुम भी अच्छी तरह जानती हो उनके पास देने को कुछ नहीं बचा है ।दो मंजिला मकान वे पहले ही देवरजी और इनके नाम कर चुके हैं ।जो पेंशन आती है वह भी कम पड़ती है।" देवरानी चलते हुए अकड़ कर बोली," जो भी है मैं इतनी बेवकूफ नहीं सारे दिन ताने भी सुनती रहूं और उनकी सेवा भी करू।"
ललिता उसको जाते हुए देख सोचने लगी पता नहीं कब
से जिम्मेदारियों को निभाने वाले और ग्रह शांति को महत्व देने वाले बेवकुफों की सूची में आने लगें हैं।
दो-तीन दिन से हरारत थी, लेकिन ललिता नजरअंदाज करती रही, बेकार घर में सब परेशान हो जाएंगे। उस दिन जब बिल्कुल नहीं उठा गया तो पति ऑफिस जाने से पहले अपने डॉक्टर दोस्त के पास दिखाने ले गए। डाक्टर ने यह कहकर अस्पताल में भर्ती कर लिया कि एक बार सारे टेस्ट करवा लेते हैं ,इस उम्र में सही रहता है। पति ऑफिस चले गए और ललिता को लेटे एक घंटा भी नहीं हुआ था कि उसकी बहू आई। आते ही झुंझला कर बोली," क्या मम्मी जी जरा से बुखार में अस्पताल में एडमिट हो गई। कितनी परेशानी हो गई है, एकदम से छुट्टी लेनी पड़ी मुझे। मिनी भी हैरान हो रही है।"
मिनी ललिता की दो साल की पोती थी जिसको बहु के ऑफिस जाने के बाद ललिता ही संभालती थी।
ललिता शांत स्वर में बोली ,"बेटा दो-तीन दिन की बात है, थोड़ा एडजस्ट कर लो।" लेकिन बहू अपनी धुन में बोलती रही," एक आपने दादा जी और दादी जी को भी शुरू से अपने पल्ले बांध रखा है। सारा दिन उनकी बातें और काम ही खत्म नहीं होते हैं। ऊपर चाची जी भी तो रहती हैं वह भी तो उनकी सेवा कर सकती हैं।"
बहू ने कुछ देर और भड़ास निकाली फिर चली गई ।आई थी ललिता की तबीयत पूछने के लिए लेकिन जल्दबाजी में पूछना ही भूल गई। आंख लगी ही थी कि सासु मां आ गई। आते ही गुस्से में बोली ,"तूने अपनी बहू को बहुत सिर चढ़ा रखा है। सारा दिन दरवाजे और पैर पटक पटक कर काम कर रही है। दो रोटी क्या सेंक कर दे रही है, एहसान जता रही है।वह बस चाहती है हम दोनों मर जाएं और तू उसकी सेवा करती रहे।"
ललिता धीरे से बोली ,"बच्ची का साथ है ,काम की ज्यादा आदत नहीं है बहू को । आज आप खाना बना लेती।" सास भड़क गई ,"अब तू अपनी बहू की बोली मत बोल।"
और जितनी देर बैठे रही बहु की बुराई करती रही ।ललिता को चिंता हो रही थी उसके पीछे से दोनों में ज्यादा कहासुनी हो गई तो उसे ही दोनों को शांत करने में मेहनत करनी पड़ेगी।
फिर देवरानी आई देखने ।दो चार इधर की बातें कर बोली," आपको भी भाभी जी भलाई लेने का कुछ अधिक ही शौक है ।अरे उतना ही करना चाहिए जितना शरीर झेल सके। सबके सामने आदर्श बहू का खिताब जीतने के चक्कर में आपने अपना हाल बेहाल कर रखा है।"
ललिता आश्चर्य से बोली," तुमसे एक दिन बनी नहीं माजी की, तो फिर क्या करते ? बुजुर्ग मां-बाप की कोई तो करेगा ही।"
देवरानी हाथ मटका कर बोली ,"अरे हर समय बैठा कर खिलाओ यह किसने कहा आपसे ? बुढ़िया को कुछ करने को कहा करो ।खैर जो करेगा उसे ही मिलेगा इस आस में सेवा करते रहो।"ललिता तिलमिलाकर बोली," तुम भी अच्छी तरह जानती हो उनके पास देने को कुछ नहीं बचा है ।दो मंजिला मकान वे पहले ही देवरजी और इनके नाम कर चुके हैं ।जो पेंशन आती है वह भी कम पड़ती है।" देवरानी चलते हुए अकड़ कर बोली," जो भी है मैं इतनी बेवकूफ नहीं सारे दिन ताने भी सुनती रहूं और उनकी सेवा भी करू।"
ललिता उसको जाते हुए देख सोचने लगी पता नहीं कब
से जिम्मेदारियों को निभाने वाले और ग्रह शांति को महत्व देने वाले बेवकुफों की सूची में आने लगें हैं।
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