Monday, 16 September 2019

कसक
 निशा का बयालीसवा  जन्मदिन था, वह मंदिर जाने के लिए तैयार हो रही थी ।उसने अपनी मां की साड़ी पहनी, बड़ी सी बिंदी लगाई और अपने छोटे बाल खींचकर मां की तरह जुड़ा बनाया ।जब आईने में देखा तो लगा मां सामने खड़ी है ,लेकिन उदास लग रही थी ।निशा भी तो मुस्कुरा नहीं रही थी। मां बयालीस साल की थी जब उनकी मृत्यु हुई थी ।निशा की पंद्रह दिन बाद शादी थी ।उसी दिन पिताजी गहने लेकर आए थे, ना जाने लुटेरों को कैसे भनक  लग गई, रात को घर में घुस आए।
 निशा ,उसके पिता और दादी को रस्सी से बांध दिया और मां को बंदूक दिखाकर तिजोरी में से गहने निकालने के लिए कहा। गहनों का डब्बा निकालकर, सीने से लगा मां ने साफ कह दिया वह गहने नहीं देंगी। निशा और उसके पिता चिल्लाते रह गए ," दे दो गहने जान से अधिक कीमती नहीं है ।"लेकिन वह नहीं मानी, छीना झपटी में गोली चली और मां घायल हो गई ।गोली की आवाज सुनकर पड़ोसियों ने शोर मचा दिया, दरवाजा पीटने लगे तो चोर घबरा कर भाग गए ।मां चल बसी नि,को उन गहनों से नफरत सी हो गई ।वह उन्हें हाथ भी नहीं लगाना चाहती थी। लेकिन दादी ने समझाया," इन गहनों को बचाने के लिए बहू ने जान गवा दी और तू अब इन्हें ले जाना नहीं चाहती ।पहले ही तेरा बाप इतना दुखी है  दूसरे कहां से बनवा कर लाएगा ?"शादी चार महीने बाद हुई, लेकिन निशा के दिल में हमेशा कसक रही मां होती तो कुछ और बात होती।

निशा को नियति की इस नाइंसाफी पर  बहुत गुस्सा आता । उसको लगता मां को और जीना चाहिए था, जब तक सारे बाल सफेद  नहीं हो जाते ,कमर झुक नहीं जाती ।अगर मां होती तो नाती पोतों को खिलाती। पिता को इतना अकेलापन नहीं महसूस होता ।इतने सालों बाद भी उसे लगता मां को यह बताना था ,वो पूछना था ,यह दिखाना था ।निशा ने अपनी शादी के गहनों में से पहली बार सोने की चेन निकाल कर पहनी। उसे महसूस हुआ वह  बदल गई है, बालों में इधर-उधर से झांकती सफेदी, गंभीरता ओढ़े चेहरा, लगा वह अपनी मां बन गई है ।जिंदगी के नए पडाव में प्रवेश कर रही थी। अब वह  अपनी मां से बड़ी होती जाएगी, उसके दिमाग में तो मां की बस अब तक की छवि अंकित थी।
 इस बात पर उसे हंसी आ गई ,तो देखा आईने में खड़ी मां भी हंस रही थी ।उसे महसूस हुआ वह  पागल थी, मां तो हमेशा उसके अंदर ही जीवित थी ।वह अपनी मां की तरह काम करती और सोचती थी। मां की बढ़ती उम्र ,बालों का सफेद होना, चेहरों का झुर्रियों से भरना ,वह सब देखेगी और महसूस भी करेगी स्वयं के माध्यम से।

Monday, 9 September 2019

 डायरी
केतकी को गुजरे सात दिन ही हुए थे और सत्यजीत को चिंता होने लगी थी, अकेले इतने बड़े घर में कैसे रहेंगे। चारों बच्चे अपने अपने परिवार के साथ आपने संसार में जाने की तैयारी कर रहे थे। केतकी के जीते जी जब सत्यजित ऑफिस क्लब या दोस्तों के साथ मस्ती करके घर आते थे तो वह इंतजार करती मिलती थी। उनके आते ही आगे पीछे घूमने लगती, कभी पानी तो कभी खाने का आग्रह करती, कुछ ना कुछ बोलती रहती ।वे झुंझला कर  कह देते थे, "आते  ही शुरू हो जाती हो ,थका हुआ आया हूं पर  पहले तुम्हारा बड़बड़ाना सुनूं।"
केतकी को कहीं साथ ले जाने की   आवश्यकता  महसूस नहीं हुई लेकिन अब लग रहा था  केतकी का बोलना याद आएगा  जब रात दिन घर में सन्नाटे का राज होगा। तभी सबसे बड़ी पोती कुछ किताबें  लेकर ड्राइंग रूम में दाखिल हुई जहां सब बैठे थे। उत्साहित होकर बोली ," देखो अम्मा की अलमारी में से कितनी सारी डायरियां निकली है ।"
सत्यजीत ने बहू बेटियों को कह दिया था केतकी का जो सामान वे लेना चाहे ले ले, लेकिन किसी ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।
बड़ा बेटा तपाक से बोला," अरे पुरानी डायरियां होंगी ,मॉम को सामान इकट्ठा करने का बहुत शौक था ।अभी तो और भी न जाने क्या-क्या बेकार की चीजें निकलेंगी।"
 तभी बड़ी बहू ने एक डायरी हाथ में लेकर पन्ने पलटते हुए कहा ," इसमें तो बड़े बड़े शायरों और कवियों की रचनाएं है ,लगता है मम्मी जी को साहित्य में रुचि थी ।आप तो कह रहे थे वे कुल दसवीं पास थी।"
 पुत्री बोली ,"यहां वहां से उतार ली होगी ।अब समय तो बहुत रहता था, कुछ करने को था नहीं ।"
तभी एक दामाद ने दूसरी डायरी के पन्ने पलटते हुए कहा ,"लगता है उन्हें स्वयं भी लिखने का शौक था।' मेरे जज्बात मेरे अल्फाजों की आगोश में'।"
 एक दो पन्ने पढ़ने के बाद वह बोला," बहुत सुंदर लिखा है, एक औरत की छटपटाहट और आकांक्षाओं का  बहुत सूक्ष्मता से वर्णन  किया है।"
 सत्यजीत हड़बड़ा कर बोले," छटपटाहट कैसी ?सब तो था उसके पास, इतना बड़ा घर ,बच्चे ,पैसों की कभी कोई कमी नहीं छोड़ी थी मैंने।"
 दूसरी पुत्री  दुखी स्वर में बोली ,"लेकिन उनके कोमल मन में हम सब ने कभी नहीं झांका। सब अपनी अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने में लगे रहे ।"
सत्यजीत को भी महसूस हुआ कि चालीस  साल  के वैवाहिक जीवन में वे अपनी पत्नी को कितना जान और समझ पाए ।उसके व्यक्तित्व के एक हिस्से से तो वे बिलकुल अनजान थे।
वह दमाद अभी भी डायरी पढ़ने में लगा हुआ था ,बोला," मैं अपने एक मित्र को यह  डायरी दिखाता हूं ,उसे साहित्य का अच्छा  ज्ञान है ।उसके सहयोग से मैं मम्मी जी की रचनाओं  की किताब छपवाऊंगा ।यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।"
सत्यजीत सिर झुकाए बैठे थे उनकी हिम्मत नहीं हुई दमाद से वह  डायरी मांग ले जिसमें उनकी पत्नी की रुह थी।

Monday, 2 September 2019

 क्या मैं बेवकूफ हूं
दो-तीन दिन से हरारत थी, लेकिन ललिता नजरअंदाज करती रही, बेकार घर में सब परेशान हो जाएंगे। उस दिन जब बिल्कुल नहीं उठा गया तो पति ऑफिस जाने से पहले अपने डॉक्टर दोस्त के पास दिखाने ले गए। डाक्टर ने यह कहकर अस्पताल में भर्ती कर लिया कि एक बार सारे टेस्ट करवा लेते हैं ,इस उम्र में सही रहता है। पति ऑफिस चले गए और ललिता को लेटे एक घंटा भी नहीं हुआ था कि उसकी बहू आई। आते ही झुंझला कर बोली," क्या मम्मी जी जरा से बुखार में अस्पताल में एडमिट हो गई। कितनी परेशानी हो गई है, एकदम से छुट्टी लेनी पड़ी मुझे। मिनी भी हैरान हो रही है।"
मिनी ललिता की दो साल की पोती थी जिसको बहु के  ऑफिस जाने के बाद ललिता ही संभालती थी।
ललिता शांत स्वर में बोली ,"बेटा दो-तीन दिन की बात है, थोड़ा एडजस्ट कर लो।" लेकिन बहू अपनी धुन में बोलती रही," एक आपने दादा जी और दादी जी को भी शुरू से अपने पल्ले बांध रखा है। सारा दिन उनकी बातें और काम ही खत्म नहीं होते हैं। ऊपर चाची जी भी तो रहती हैं वह भी तो उनकी सेवा कर सकती हैं।"
 बहू ने कुछ देर और भड़ास निकाली फिर चली गई ।आई थी ललिता की तबीयत पूछने के लिए लेकिन जल्दबाजी में पूछना ही भूल गई। आंख लगी ही थी कि सासु मां आ गई। आते ही गुस्से में बोली ,"तूने अपनी बहू को बहुत सिर चढ़ा रखा है। सारा दिन दरवाजे और पैर  पटक पटक कर काम कर रही है। दो रोटी क्या सेंक कर दे रही है, एहसान जता रही है।वह बस चाहती है  हम दोनों मर जाएं और तू  उसकी सेवा करती रहे।"
ललिता धीरे से बोली ,"बच्ची का साथ है ,काम की ज्यादा आदत नहीं है बहू को । आज आप खाना बना लेती।" सास भड़क गई ,"अब तू अपनी बहू की बोली मत बोल।"
 और जितनी देर बैठे रही बहु की बुराई करती रही ।ललिता को चिंता हो रही थी उसके पीछे से दोनों में ज्यादा कहासुनी हो गई तो उसे ही दोनों को शांत करने में मेहनत करनी पड़ेगी।

 फिर देवरानी आई देखने ।दो चार इधर की बातें कर  बोली," आपको भी भाभी जी भलाई लेने का कुछ अधिक ही शौक है ।अरे उतना ही करना चाहिए जितना शरीर झेल सके। सबके सामने आदर्श बहू का खिताब जीतने के चक्कर में आपने अपना हाल बेहाल कर रखा है।"
 ललिता आश्चर्य से बोली," तुमसे एक दिन बनी नहीं माजी की, तो फिर क्या करते ? बुजुर्ग मां-बाप की  कोई तो करेगा ही।"
 देवरानी हाथ  मटका कर बोली ,"अरे हर समय बैठा कर खिलाओ यह  किसने कहा आपसे ? बुढ़िया को कुछ करने को कहा करो ।खैर जो करेगा उसे ही मिलेगा  इस आस में सेवा करते रहो।"ललिता तिलमिलाकर बोली," तुम भी अच्छी तरह जानती हो उनके पास देने को कुछ नहीं बचा है ।दो मंजिला मकान वे पहले ही  देवरजी और इनके नाम कर चुके हैं ।जो पेंशन आती है वह भी कम  पड़ती है।" देवरानी चलते हुए अकड़ कर बोली," जो भी है मैं इतनी बेवकूफ नहीं सारे दिन ताने भी सुनती रहूं और उनकी सेवा भी करू।"
 ललिता उसको जाते हुए देख सोचने लगी पता नहीं कब
से जिम्मेदारियों को निभाने वाले और ग्रह शांति को महत्व देने वाले बेवकुफों की सूची में आने लगें हैं। 

Friday, 6 April 2018

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Thursday, 28 December 2017

प्रेम की जीत




मंगल को कालेज में आए तीन साल हो गए थे लेकिन उसकी आज तक एक अदद गर्लफ्रेंड नहीं बनीं थीं जो उसकी बदनामी में एक धब्बें का काम कर रही थी। कालेज और मुहल्ले के हर लफड़े में उसकी टंगड़ी होती थी लेकिन एक लड़की पटाने के लिए जो धैर्य चाहिए था वह उसमें नहीं था। लेकिन फिर भी उसने निश्चय किया कि इस बार यह काम भी अवश्य करेगा। अपनी कक्षा की सब लड़कियों को उसने बहुत ध्यान से देखना शुरू किया, उसे ऐसी लड़की चाहिए थी जो बहुत तेज न हो और जिसका कोई बायफ्रेंड और बड़ा भाई न हो।
वह कुछ भी करता था आखिर में फंसता भी था और धुनाई हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं थी। काफी शोध कार्य के बाद उसे आभा इस काम के लिए बिल्कुल उपयुक्त लगी। उसका आजतक किसी से कोई चक्कर नहीं चला था न उसका कोई भाई बंधू इस कालेज में था। देखने में सीधी सरल थी बस थोड़ी पढ़न्तू किस्म की लड़की थी।
उसको देखते ही मंगल को कोई वाद्य यंत्र तो नहीं सुनाई पड़ा नाही हवा चली जिस के कारण उसके बाल उड़े हों।इन बातों को नज़रंदाज़ करके उसने आभा से बातचीत का सिलसिला शुरू किया। आभा मंगल की मंशा से अनभिज्ञ उससे एक सहपाठी की तरह व्यवहार करती थी और मंगल के दिमाग़ में हर बात की कुछ अधिक ही शीघ्रता रहती। उसने आभा से एकाउंट की किताब मांगी सोचा एक प्रेम पत्र लिखकर देगा तो शायद इस बोड़म के कुछ समझ में आएगा।  प्रेमपत्र क्या उसे किसी भी तरह का पत्र लिखना नहीं आता था,वह बस काम चलाऊ पढ़ाई करता था जिससे अगली कक्षा में इज्ज़त से पहुंच जाएं।
दिमाग तेज था इसलिए बहुत कम पढ़ाई से ही उसका काम चल जाता था। इस काम के लिए उसनेे  अपने बड़े भाई बुधप्रकाश से सहायता लेने का निश्चय किया।सारा दिन किताबों में सिर गड़ाएं बैठा रहता है इतना तो आता ही होगा।
बुधप्रकाश की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब मंगल ने उससे मदद मांगी। आखिर वह भी इस तरह की खुराफातें करना तो चाहता था लेकिन  हिम्मत की कमी थी। मंगा से उसकी करस्तानियां सुनकर काम चला लेता था।रात भर जाग कर बड़े भाई का फ़र्ज़ निभाते हुए इधर उधर से टीप कर एक बेहद रोमेंटिक पत्र किसी तरह लिख दिया। अपने कार्य पर इतना मुग्ध हो रहा था सोचा पढ़कर मंगा तो खुशी के मारे पागल हो जाएगा ‌। लेकिन मंगा को पढ़ने की फुर्सत कहां, तुरंत किताब में डाला और कालेज जाकर किताब आभा को पकड़ा दी। कक्षा प्रारंभ हो गई थी,मंगल थोड़ी थोड़ी देर बाद आभा की तरफ देखता शायद कोई प्रतिक्रिया मिले लेकिन उसका सम्पूर्ण ध्यान प्रोफेसर की तरफ था। उसके पास बैठी मित्रा न जाने क्यों उसे देखकर मुस्कुरा रही थी,वह जब भी आभा कि ओर देखता मित्रा उसको देख रहीं होती और नजरें मिलते ही हंसते हुए पलकें झुका लेती। मंगल की समझ नहीं आ रहा था झमेला क्या है, शाम को पार्क में मिलने का कार्यक्रम रखना है ऐसा पत्र में अवश्य डालें उसने भाई को कह दिया था।
शाम को जब पार्क गया तो बेंच पर  वहां आभा नहीं मित्रा उसका इंतजार कर रही थी। उसने सोचा अवश्य ही आभा ने भेजा होगा मना करने के लिए। लेकिन जल्दी ही उसको माजरा समझ आ गया,वह पुस्तक मित्रा की थी इसलिए आभा ने मंगल के लोटाने पर बिना खोले तुरंत मित्रा को लोटा दी। पत्र में नाम किसी का नहीं था न भेजने वाले का न पाने वाले का‌।पर मित्रा ने मंगल को किताब लौटाते हुए देख लिया था,तो समझी पत्र उसके लिए है ‌। किताब में नाम तो मित्रता का लिखा था लेकिन मंगल ने किताब के पन्नो को पलटने का कष्ट  किया ही कब था। अब मंगल ने सोचा उसे क्या फर्क पड़ेगा आभा नहीं तो मित्रा से ही काम चला लेते हैं।वह उससे हल्की फुल्की इधर उधर की बातें करने लगा और मित्रा शरमा कर दोहरी हुए जा रही थी। दस पंद्रह मिनट में ही मंगा को बोरियत होने लगी , कुछ बोल तो रहीं नहीं है बस ही ही करके लाल हुई जा रही है ‌। उसे समझ नहीं आ रहा था उसके दोस्तों को क्या मज़ा आता है। उसके दोस्त जो काम दो महीने बाद करते थे उसने सोचा आज ही करलें ‌धीरे से उसका हाथ पकड़ कर दबाने के इरादे से उसने अपना हाथ बढ़ाया ही था कि दो पहलवान जैसे बंदे एकदम सामने आकर खड़े हो गए।
मित्रा की उनको देखकर घिग्घी बंध गई।वे दोनों मंगल पर टूट पड़े ," साले तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारी बहन को पार्क में अकेले बुलाने की।" वैसे तो मंगल भी अच्छा खासा लम्बा चौड़ा मजबूत बंदा था लेकिन अपने जैसे दो के आगे कैसे टिकता।उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था आभा की तो इतनी तहकीकात की थी लेकिन जब लड़की बदली तो जल्दबाजी में सारी सावधानी बरतनी भूल गया ‌।भाई को फोन करके बुलाया, किसी तरह लंगड़ाते और करहाते हुए घर पहुंचा तो मां मनस्विनी ने चीखना शुरू कर दिया ‌‌। " हाय हाय देखो तो फिर कोई कांड कर आया,इस लड़के को बिल्कुल चैन नहीं है ।"
अब वह उस पर हाथ चलाती जाएगी और चीखती जाएगी ' जहां दंगा वहां मंगा, जहां पंगा वहां मंगा।' लेकिन इसकी नौबत नहीं आई पिता योगराज गुप्ता घर आ गए थे और आगे की कमान उन्होंने संभाल ली। दो चार धोल जमा बड़बड़ाने लगे ," बाज़ नहीं आएगा यह लड़का ,जब देखो तब दंगा फसाद करता रहेगा। हमारे नाम का बटृटा बिठा दिया है इसने,साले किसी दिन हमारे हत्थे चढ़ गए तो कहीं आने जाने लायक नहीं रहोगे ‌ पिछले महीने ही इतनी कुटाई हुई , लड़कियों के हास्टल से पाइप से उतरते हुए पकड़े गए, लेकिन रत्ती भर भी सुधर जाए तो क़यामत नहीं आजाएं।" और जाकर सोफे में धंस गए मज़े से टीवी देखने के लिए। मंगल सुधरे तो तब न जब उसे अपनी गलती नज़र आती हो। आखिर पतंग कट कर गर्ल्स हॉस्टल की छत जा गिरी तो कोई तो उठाने जाएगा ही। कमरे में लंगड़ाते हुए पहुंचा तो बुधप्रकाश ‌उत्सुकतावश आगे पीछे मंडराने लगे ," बताना मंगे क्या हुआ? कुछ बात आगे बढ़ी,पत्र कैसा लगा उसे ?" मंगल को बहुत खुन्नस आ रही थी सब पर ,बोला " अबे साले दूर से क्यो पूछ रहे हो, तनिक पास आओ न फिर बताते हैं क्या हुआ था।मज़े की बात सुननी है,अपने साथ थोड़ी मार भी शेयर कर लेते।" बुध प्रकाश समझ गया मसाला तो कुछ सुनने को मिलेगा नहीं,दो चार चपत का आदान-प्रदान हो जाएगा ‌इसलिए अपनी खामोश सखी किताब में ही सिर झुका के बैठ गया
दस पंद्रह दिन बाद मंगल कालेज पहुंचा तो उसे देखते ही मित्रा उसके पास आकर बोली ," हमें माफ कर दो उस दिन बड़ी गलती हो गई।वह पत्र न जाने कैसे घर में टेबल पर रखा रह गया और भाई ने पढ़ लिया। भाई और उसके दोस्त ने तुम्हारी इतनी धुनाई की हमें बहुत बुरा लगा। हम ने दस दिन से न ठीक से खाना खाया है न ठीक से सोएं है ,बस तुम्हारी चिंता लगी रहती थी। तुमने तो इतना अच्छा पत्र लिखा , हमारी इतनी तारीफ लिखीं थीं ,हम तो बावले से हो गए पढ़ कर। भाई ने पता नहीं क्या किया उस पत्र का लेकिन हम उसे उस दिन इतनी बार पढ़ें थे कि हमें याद  हो गया था। हमें बहुत चिन्ता हो रही थी पता नहीं तुम कैसे हो ।"
अब मंगल को कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी लड़की पटाने में तो उसने पीछा छुड़ाने के लिए कह दिया," वह पत्र हमने नहीं लिखा था हमारे बड़े भाई साहब ने लिखा था। वैसे भी अपने को यह सब नहीं करना है इसलिए तुम हमें भूल जाओ‌ ‌।"
अब मित्रा को कौन सा लैला मजनू वाला इश्क हुआ था,तू नहीं तो कोई और सही वाली तर्ज पर उसने अपना फोकस मंगल के बड़े भाई की तरफ कर दिया। कालेज में सब लोग मंगल के कारण उसके सीधे सादे  बड़े भाई को जानते थे जो उसी कालेज के एम काम के अंतिम वर्ष का छात्र था। मित्रा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उस पत्र में श्रृंगार रस के लोकप्रिय कवि और लेखकों की पंक्तियां चेपी हुईं थीं और जो तारीफ उसमें लिखी थी वह किसी भी लड़की पर सही बैठती है ‌। मित्रा का भाई उस पत्र की सहायता से अपने लिए लड़की पटाने में लगा था।
जल्दी ही मंगल का बी काम पूरा हो गया और उसने आगे पढ़ने से इंकार कर दिया। बुध का एम काम हो गया था और उसे नौकरी भी मिल गईं थीं लेकिन मंगल को नहीं मिल रही थी।मनस्विनी ने अपने भाई सहदेव से विनती की कि वह मंगल की हिचकोले खाती किश्ति को कुछ सहारा देदे। एक ही शहर में रहते हुए भी सहदेव का अपनी बहन के घर आना जाना जरा कम ही था। अपने बहनोई की पुलिसिया रौब और कड़कदार आवाज के कारण उसे कुछ दूरी बनाकर रखने में ही अपनी भलाई लगती थी ‌। उसने सी ए कर रखी थी और एक बड़ी फर्म में काम करता था।कई सालों से काम कर रहा था तो एक दो को अपने नीचे काम देना कोई मुश्किल काम नहीं था उसके लिए। मंगल जब भी सहदेव से मिलता बड़ी शालीनता से बोलता, देखने में अच्छा था ही जब भी ननिहाल जाता अच्छे कपड़ों में जंच कर जाता । इसलिए सहदेव के दिमाग़ में था कि उसके भांजे बड़े कायदे के बच्चें है लेकिन एक सप्ताह में ही उसकी गलतफहमी दूर हो गई। पता नहीं मंगल के पीछे क्या कांटे उगे थे दस मिनट भी अपनी कुर्सी पर टिक कर नहीं बैठ सकता। बच्चों की तरह कभी पानी पीने तो कभी सू-सू करने के बहाने सारे आफिस की चहलकदमी करता रहता और जहां तीन चार लोग साथ खड़े दिख जाते वह भी पंचायत करने खड़ा हो जाता।एक दिन दो-तीन लोग की बहस में वह भी कूद पड़ा और एक का पक्ष लेते हुए दूसरे से बेकार में उलझ गया।उस दिन सहदेव को बहुत काम था वह जल्दी बॉस के कक्ष की तरफ बढ़ रहा था।
तभी जिस बंदे से मंगल भीड़ा था, ने जाकर सहदेव से मंगल की दबी जबान में शिकायत कर दी। सहदेव की बीस साल की नौकरी में कभी किसी से तू-तू मैं-मैं नहीं हुई थी। उसकी आदत ही नहीं थी किसी के बीच में बोलने की,वह अपने काम से काम रखता था। लेकिन जब से मंगल आया है उसे बहुत टेंशन रहने लगी थी,काम तो कुछ करता नहीं था और खुराफातें करने से बाज नहीं आता था। उसकी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, तभी बास की सेक्रेटरी रमाबेन फोन रखते हुए सहदेव से बोली ," बॉस के घर से फोन था , उज्वला बेटी परेशान हो रही है कोई नल खराब हो गया है, पानी बहने लगा है।सर किसी प्लम्बर को जानते हो तो भेज दो।"
सहदेव ने सोचा मंगल को आफिस से दूर रखने का इस से अच्छा मौका कहां मिलेगा, कुछ न  कुछ करके नल तो ठीक करवा ही देगा। उसने तुरंत मंगल को बास के घर का पता दिया और कहा ," वहां जाओ कुछ नल वल ठीक करने है , किसी प्लम्बर को जानते हो तो साथ ले जाना। वहां तुम्हें उज्वलाजी मिलेंगी उनसे ही प्लम्बर के पैसे दिलवा देना।"
इस तरह के कामों में मंगल को बड़ी महारत हासिल थी,घर की सारी तोड़फोड़ वही ठीक करता था। उसने सोचा पहले देखले क्या काम है,स्वयं कर सकता होगा तो ठीक है नहीं तो किसी को बुला कर लें जाएगा। बताएं हुए पते पर जब वह अपनी मोटर साइकिल से पहुंचा तो जो घर उसके सामने आया उसके लिए वह बिल्कुल तैयार नहीं था, बहुत ही सुन्दर और आलीशान कोठी थी। गार्ड को अपना परिचय पत्र दिखाकर वह अंदर चला गया। वहां महंगी गाड़ी खड़ी थी, उसने सोचा काम बाद में देखेंगे पहले दो चार सेल्फी लेली जाएं गाड़ी और कोठी के आगे। दोस्तों पर रौब जमाने में मजा आएगा,कितने बड़े बड़े लोगों में उठना बैठना हो गया है। गार्ड ने फोन पर उज्वला को मंगल के आने की सूचना दे दी थी,वह बाहर देखने आईं इतनी देर क्यो लग रही है। मंगल लगा हुआ था अलग अलग कोणों से फोटो लेने में,उज्वला ने अनेक बार हेल्लो बोला तब मंगल का ध्यान उज्वला की तरफ गया।
वह उज्वला को देखता रह गया,, उसने इतनी खूबसूरत कोमल और नाजुक सी लड़की आज तक नहीं देखी थी। आलिशान बंगले, शानदार बगीचे के मध्य लम्बी स्कर्ट में खड़ी वह हसीन लड़की एक खुबसूरत तस्वीर का हिस्सा लग रही थी। उसकी आँखे झपकना और दिल धड़कना बंद हो गया था,वह बुत सा खड़ा उसे देखता रह गया। उज्वला को लगा उसने मंगल को फोटो खींचते देख लिया है तो बिचारा डर गया है ,डर के मारे उसके हाथ पैर सुन्न हो गए हैं। वह कुछ नम्रता से बोली ," पापा के आफिस से आए हो नल देखने।"
मंगल सकपकाते हुए बोला ," जी हां जी हां , मुझे इसी काम के लिए भेजा गया है।" उज्वला मुड़ कर घर की ओर चल दी तो मंगल भी पीछे पीछे चल दिया। नल कुछ आधुनिक डिजाइन के थे लेकिन खोल कर देखा तो कोई मुश्किल काम नहीं था। एक दो के अंदर कुछ पेंच से टूट गए थे जो लाकर लगाने पड़ेंगे और बाकी सब का पेंच कसने से काम चल जाएगा। मंगल ने सोचा चार पांच नल ठीक करने के लिए सामान लाना पड़ेगा  कहकर पैसे बना लेता हूं , ठीक करने के पैसे तो देगी नहीं आखिर आफिस का बंदा है। जो दिल उसकी खूबसूरती देख कर धड़कना भूल गया था अब उसके चलने के स्टाइल लहराते बालों और मधुर आवाज के कारण जोर जोर से धड़क रहा था। एक बार को तो लगा इससे झूठ बोल कर इस तरह पैसा लेना गलत होगा लेकिन घर के अंदर रखे सामान को देखकर लगा इसे एक हजार रुपए निकालकर देने में कोई तकलीफ़ नहीं होगी। उसने उज्वला से कहा नल ठीक करने के लिए कुछ सामान की आवश्यकता है और एक हजार रुपए लेकर चला गया। दो-तीन पेंच खरीदने में उसे अधिक समय नहीं लगा लेकिन सोचा इतनी जल्दी जाकर क्या करेगा,वह वहीं कालोनी में घूम कर एक से एक बने बंगलों को देखने लगा।
तभी एक स्कूल बस आकर रुकी। छः सात बच्चे उतरे और सब एक दुबले-पतले, तेरह चौदह साल के लड़के पर अपने अपने बस्ते लादने लगे। मंगल को हंसी आ गई अपने बचपन के दिन याद करके कैसे कमजोर और सीधे बच्चों को तंग करते थे। लेकिन जब पांचवें बच्चे ने अपना बस्ता भी उसके हाथ पर टांग दिया और वह बच्चा बोझ के कारण बिल्कुल चलने की स्थिति में नहीं रहा तब मंगल को यह अच्छा नहीं लगा। तभी एक मोटे लड़के ने अपना बस्ता उसके सर  पर रखते हुए उसे धक्का देते हुए कहा ," अबे चलता क्यो नही है, मेहंदी लगा रखीं हैं।" लड़का जमीन पर गिर गया और उस मोटे लड़के ने लात मारनी शुरू कर दी अब मंगल से बर्दाश्त नहीं हुआ।वह बीच में कूद पड़ा और सब बच्चों को पीछे धकेल कर उस जमीन पर गिरे बच्चें को सहारा देकर उठाया। तभी वह भारी-भरकम बच्चा बदतमीजी से बोला," बीच में से हट जाओ, यह हमारा आपसी मामला है, बेकार में इसके साथ तू भी पिट जाएगा।"
बस मंगल के लिए तो अब यह निजी लड़ाई हो गई एकदम से उस लड़के पर झपटा,उसका कोलर पकड़ा और जोर से पेट में घूंसा मारते हुए बोला
" आपसी मामला तब होता जब यह छोटा सा मजाक होता,तू ज्यादती कर रहा है। बच्चा समझ कर एक ही घूंसा मारूंगा, लेकिन इस से समझ जा मैं तेरा क्या हाल कर सकता हूं। आइंदा इस लड़के को एक उंगली से भी छू लिया तो तेरी सारी उंगलियां तोड़ कर रख दूंगा।" बाकी सब बच्चें तो सारी अंकल कहते हुए अपने अपने बस्ते उठाकर भाग गए।
वह लड़का डटा रहा और घूरते हुए बोला," तुम्हें पता नहीं मेरे पिता बहुत पैसे वाले हैं, तुझे कहीं का नहीं छोड़ेंगे।" मंगल को उसकी सीनाजोरी पर गुस्सा आ गया,एक और घूंसा मारते हुए कहा " देख बेटा तेरे पिता को जब पता चलेगा तू क्या कर रहा है तो पहले तो तेरी शामत आएगी। चल वे तेरा गलत काम में साथ देते हैं तो तुझे नहीं पता मैं कितना बड़ा गुंडा हूं तुझ जैसे को तो ऐसा ठीक करता हूं अपना नाम पता सब भूल जाते हैं। " उस समय उस लड़के ने भागने में ही अपनी भलाई समझी।
मंगल ने उस लड़के का बस्ता अपने कंधे पर लाद कर कहा," चलो तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं।" वह लड़का चुपचाप चला पड़ा, कुछ पल बाद मंगल ने ही पूछा," तुम्हारा नाम क्या है और क्यो तंग कर रहा था वह लड़का तुम्हें?"
वह लड़का बोला ," मेरा नाम अरमान है और वह तुषार था, नया आया है इस कलोनी में। वे सब मेरे दोस्त थे जिन्हें उसने डरा-धमकाकर अपनी तरफ कर लिया और मुझे तंग करता है क्योंकि मैंने उसकी बातें नहीं मानी। वह जबरदस्ती सब से कहता है घर से पैसे लाओ जिससे वह सिगरेट खरीद सकें।" फिर वह एक घर के आगे रूक गया और बस्ता लेते हुए बोला ," आज आपने मेरी सहायता की उसके लिए धन्यवाद। मुझे बहुत मजा आया उसको पिटता देखकर लेकिन अब वह मुझ से बदला लेगा और आप हर समय तो मेरे साथ नहीं रह सकते।" मंगल को उसे उदास देखकर दुख हुआ बिचारा इतनी सी उम्र में कितना टेंशन में हैं :" मैं तुम्हें अपना फोन नंबर दे देता हूं,जब भी लगे वह परेशान कर रहा है मुझे फ़ोन कर देना मैं तुरंत आ जाऊंगा।"
अब अरमान के चेहरे पर मुस्कान आ गई," आप सच कह रहे हो।" कहकर उसने एक कागज पर मंगल का फोन नं लिख लिया। मंगल की निगाह जब बंगले पर गई तो उसने पूछा ," तुम यहां रहते हो ?" जब उस लड़के ने हामी भरी तो उसे समझते देर नहीं लगी यह बास का लड़का है। अंदर गए तो उज्वला अरमान को देखते ही बोली ," यह चोट कैसे लगी?" उसके घुटने छिले हुए थे,वह बोला," कुछ नहीं गिर गया था।" और वह अंदर कमरे में चला गया, उज्वला भी उसके साथ चली गई। मंगल नल ठीक करके चला गया। जबसे उसकी और बुधप्रकाश की नौकरी लगी थी यार दोस्त पार्टी मांग रहे थे।मंगल ने सोचा था दोनों भाई मिल कर एक बार में ही किसी महंगे रेस्टोरेंट में दोस्तों को लेकर जाएंगे,अब तो मुफ्त के एक हजार रुपए भी मिल गए थे।
अगले दिन शाम को मंगल और बुध प्रकाश अपने दोस्तों को लेकर शहर के सबसे बढ़िया होटल में खाना खाने गए। बुध प्रकाश की गर्ल फ्रेंड मित्रा भी साथ थी। मित्रा पत्र से इतनी प्रभावित हो गई थी कि उसने बुध प्रकाश के पीछे पड़कर उसे अपना दोस्त बना ही लिया। मित्रा को बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी बुध प्रकाश स्वयं मरा जा रहा था कोई लड़की उसकी तरफ ध्यान दें।अब वह बहुत खुश था , नौकरी छोकरी दोनों उसके पास थी। सब एक से एक लजीज खाना खाने में लगे थे तभी मंगल की निगाह कोने की टेबल पर गईं वहां तीन कपल्स बैठें थे। उनमें एक लड़की थी जो काले रंग की घुटने तक की पोशाक ऊंची एड़ी की सेंडल और हल्के मेकअप में बहुत सुंदर लग रही थी। ध्यान से देखा तो लगा यह तो उज्वला है।वह उठकर हाल से बाहर जा रही थी।
दस मिनट तक जब वह नहीं लौटी तो उत्सुकता वश वह भी हाल से बाहर कारीडोर में आ गया। दोनों तरफ देखा तो एक तरफ से वह आती दिखाई दी। मंगल आगे बढ़ कर कुछ बोलता की एक बंदा तेज कदमों से चलता हुआ आया और उज्वला के ठीक सामने जाकर खड़ा हो गया। महंगे कपड़ों में भारी-भरकम वह बन्दा उज्वला से आठ दस साल बड़ा लग रहा था। उसने अच्छी-खासी पी रखी थी, उसकी आंखें लाल हो रही थी और उसने गुस्से से उज्वला की एक बांह कोहनी के ऊपर कस कर पकड़ ली। उज्वला दर्द से कराह गई लेकिन उस बंदे ने परवाह किए बिना चिल्लाना शुरू कर दिया। वह कह रहा था ," तू अपने आप को समझती क्या है , छुईमुई क्या बन रही है । मेरे दोस्तों के सामने मेरा अपमान करेगी, बेशर्म कहीं की। क्या दिखाती है तू महान है,एक दो पेग पी लेगी तो कुछ बिगड़ जाएगा तेरा… ।" वह उज्वला को गालियां भी देता था रहा था।
उज्वला अपमानित महसूस कर रही थी और सिर झुकाए सुबक रही थी।होटल के कर्मचारी और अन्य मेहमान उन दोनों को देख रहें थे लेकिन बीच में बोलने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी। पर मंगल यह सब देख कर चुप रह जाए यह उसकी फितरत नही थी।वह गुस्से से भरा उस आदमी पर झपटा। पहले उसके हाथ पर इतने जोर से वार किया, उसने तिलमिला कर उज्वला की बांह छोड़ दी। उज्वला की बांह पर लाल निशान पड़ गए थे,यह देखते ही उसका खून खौल गया और उसने दो तीन घूंसे उसके चेहरे पर जड़ दिए।वह चिल्लाते हुए बोला," तेरी हिम्मत कैसे हुई किसी लड़की से ऐसे बात करने की ।" इतने में होटल के मैनेजर ने गार्ड को बुला लिया।
चुंकि वह आदमी इस होटल में अक्सर आता रहता है तो गार्ड और मेनेजर उसकी तरफ से मंगल को पीछे धकेलने लगे। वह आदमी बोल रहा था ," यह मेरी मंगेतर है मैं जैसे चाहूं इससे बात करूं।" इतने में मंगल के दोस्त और भाई भी बाहर आ गये ,इतने लोगों को मंगल पर हावी होते देख वे सब भी भिड़ गए।
इस तरह के मामले में वह कारण जानना जरूरी नहीं समझते थे कि झगड़ा किस बात पर हो रहा है, उन्हें तो बस दोस्त का साथ देने से मतलब होता है। मैनेजर ने हालात बिगड़ते देखा तो बीच बचाव किया और मंगल से विनती की कि वह बात को आगे न बढ़ाए।वह चाहे तो बिल भी अदा न करें ‌।अब भला मंगल क्यो चाहने लगा पैसे भरना,वह अपने साथियों के साथ बड़ी शान से होटल के बाहर आ गया साथ में उज्वला को भी ले आया यह कहते हुए कि उसको घर छोड़ देगा‌ ‌।
सब मोटर साइकिल से आए थे तो अपने दोस्तों को रवाना कर ,उज्वला को अपनी मोटर साइकिल पर बिठा कर वह उसके घर की ओर बढ़ गया। चांदनी रात,बाईक पर इतनी खूबसूरत लड़की, मुफ्त की दावत
और क्या चाहिए ,मंगल बहुत खुश था। उज्वला का घर जैसे ही आया वह उतरी और धन्यवाद कहकर अंदर चली गई। मंगल जैसे आसमान से गिरा, ,सारी खुशियों पर पानी फिर गया वह सोच रहा था न जाने क्या क्या बातें करेंगे।
अगले दिन भी उसका मूड ठीक नहीं था और आफिस पहुंचते ही सहदेव ने उसे डांट दिया। कहने लगा ढंग से काम सीखकर कुछ कार्य करके देखिए नहीं तो उसे मजबूरन मंगल को नौकरी से निकालना पड़ेगा। सहदेव ने रिमी से मंगल को काम सिखाने के लिए कहा और वह बड़ी प्रसन्नता से तैयार हो गई।वह कई दिनों से मौका ढूंढ रही थी मंगल से बात करने का और उससे परिचय बढ़ाने का। इतना हाट और रफ लुकिंग बंदा पूरे आफिस में कोई नहीं था कभी मस्ती करता तो कभी त्यौरियां चढ़ा कर घूमता। आज बहुत गुस्से में दिख रहा था , पहले तो उसने बेमन से काम करना शुरू किया लेकिन शीघ्र ही उसको समझ आ गया कैसे काम करना है। फिर लंच तक टिक कर उसने काफी सारा काम कर दिया।
तभी उसके पास किसी का फोन आया, मंगल को समझ नहीं आया किस का फोन है । उठाया तो अरमान का फोन था,वह कह रहा था आज तुषार ने पार्क में लेजाकर छुट्टी के बाद अपने कुछ दोस्तों के साथ अरमान की पिटाई का कार्यक्रम बनाया है। जिस लड़के को अरमान को पार्क लाने का काम सौंपा था वह अरमान का पहले बहुत अच्छा दोस्त था इसलिए उसने अरमान को सब बता दिया। दोस्त तो चाहता था कि छुट्टी के बाद अरमान किसी तरह बच कर सीधे घर पहुंच जाएं लेकिन अरमान यह किस्सा एक बार में ही खत्म करना चाहता था। मंगल ने उसे आश्वासन दिया कि वह ठीक समय पर कालोनी के पार्क में पहुंच जाएगा।
मंगल ने अपने दो दोस्तों को फोन किया और नियत समय पर उनके साथ वहां पहुंच गया। मंगल जैसे ही पार्क के गेट से अंदर पहुंचा, सामने से दूसरे गेट से अरमान और उसके दोस्त को आते देखा। तभी पेड़ों की आड़ में छिपे तुषार और उसके दोस्त अरमान की तरफ लपके। मंगल और उसके दोस्त भी अरमान की तरफ भागे लेकिन तुषार पहले पहुंच गया। उसके हाथ में एक डंडा था जिससे उसने अरमान के सिर पर हमला किया। अरमान चीख कर वहीं जमीन पर बैठ गया, और उसके सिर से हल्का सा खून बहने लगा। तब तक मंगल और उसके दोस्त वहां पहुंच गए, मंगल ने अरमान को गोद में उठा लिया और अपनी पीठ तुषार की तरफ कर दी। मंगल के दोस्तों ने तुषार के दोस्तों को खींच कर दो चार लगाएं और उन्हें काबू में कर लिया। तुषार अब गुस्से से ओर जोर से डंडे से वार करने लगा जो मंगल की पीठ पर पड़ रहें थे। मंगल अरमान के साथ आए लड़के से चीख कर बोला ," तुषार के घर जाओ और वहां जो कोई भी बड़ा हो तुरंत बुला कर लाओ। " मंगल के दोस्तों ने तुषार को भी जोर से धक्का दे कर उसके साथियों के साथ जमीन पर बैठा दिया। तुषार के हाथ से डंडा छीन कर सब के पैरों पर बरसा दिए जिससे भाग न जाए। मंगल अरमान के सिर पर अपने रुमाल रख कर दबा रहा था जब देखा वे चारों काबू में आ गए हैं तो अरमान को लेकर डाक्टर के पास जाने लगा। तभी तुषार के माता-पिता भाग कर आते दिखाई दिए ‌। अरमान की चोट और वहां का नजारा देखकर वे दोनों घबरा गए। उन्हें तुषार की बदतमीजी का बिल्कुल अंदाजा नहीं था । मंगल ने जब तुषार की तरफ गुस्से से देखते हुए कहा ," आप दोनों इसको संभाल लेंगे और आगे यह ऐसी कोई हरकत नहीं करेंगा,इस बात की गारंटी लेंगे तो ठीक है नहीं तो हम पुलिस में शिकायत करने जा रहे हैं। स्कूल से भी नाम कटवा देंगे इसका।" वे दोनों बहुत शर्मिन्दा थे , तुषार की तरफ से माफी मांगते हुए बोले ," तुषार को हम संभाल लेंगे , तुम बस अरमान की पट्टी करवा लो।"
मंगल और उसके दोस्त अरमान को लेकर वही कालोनी के डाक्टर के पास गए। चोट गहरी नहीं थी उसने घाव साफ कर करके पट्टी बांध दी।मंगल अपने दोस्तों को विदा कर अरमान को लेकर उसके घर पहुंचा। उज्वला अपने भाई के सिर पर बंधी पट्टी देखकर घबरा गई। फिर मंगल और अरमान की आपबीती सुन कर उसे कुछ तसल्ली हुई। अरमान पर थोड़ा गुस्सा भी आया इतना कुछ सहता रहा,एक बार भी अपनी परेशानी का जिक्र नहीं किया। फिर उसे हल्दी का दूध दिया और आराम करने कमरे में ले गईं। मंगल बैठक में बैठा था जब उज्वला अरमान को कमरे में लिटा कर वापिस आईं।वह उठ खड़ा हुआ जाने के लिए ,उज्वला ने उसको बैठने के लिए कहा और उसके लिए जूस लें आई। उसके चेहरे पर अभी भी उदासी थी और वह बोली," लगता है भगवान ने हम भाई-बहन की मदद का ठेका आपको दे दिया है। आपने जो कुछ किया अरमान और मेरे लिए मैं उसके लिए आपकी बहुत आभारी हूं।आपका नाम क्या है,हम तीन बार मिल चुके हैं और मैं अभी तक आपका नाम तक नहीं जानती। " अब मंगल को अपना नाम बताते हुए थोड़ा संकोच हो रहा था, दुनिया भर में इतने स्मार्ट नाम भरे पड़े हैं रोहित मोहित... लेकिन उसके मां पिताजी ने नाम रखते वक्त बिल्कुल दिमाग खर्च करना जरूरी नहीं समझा। मंगलवार को पैदा हुए तो मंगल और बुध वार को पैदा हुए तो बुधप्रकाश।वह तो गनीमत है शनिवार को पैदा नहीं हुआ नहीं तो शनिश्चर नाम रख देते। खैर अब कर ही क्या सकते हैं उसने धीरे से कहा" जी मंगल।"उज्वला को वह एक पहेली जैसा लगा, वैसे तो लड़ने मरने के लिए एक दम से कूद पड़ेगा लेकिन कुछ पूछो तो सोचता सा रह जाता है।नाम बताने में कितनी देर की , जैसे भूल गया हो, अजीब ही लड़का है।चलता हूँ कहकर वह चला गया।
इधर मंगल को लग रहा था अजीब परिवार है ,मां तो कभी घर में नज़र नहीं आती। अरमान इतने दिन से परेशान था लेकिन घर में किसी को पता नहीं और उज्वला इतने बेमेल विवाह में बंधने जा रही हैं। वह आफिस पहुंचा तो सहदेव से सामना हो गया ,वह बहुत गुस्से में था। मंगल की कहानी सुनकर कुछ गुस्सा तो शांत हुआ लेकिन काम पर ध्यान देने की सख्त हिदायत दी। जब मंगल ने बास की पारिवारिक स्थिति के बारे में जानना चाह तो सहदेव बोला ," वैसे तो बीस साल से मैं इस कंपनी में काम कर रहा हूं और भानूमान बंसल आफिस में उचित सम्मान भी देता है। लेकिन मैं उसकी निजी जिंदगी के बारे में अधिक नहीं जानता, नये साल की पार्टी में मिला था उनके परिवार से दो तीन बार ,अब दो साल से वह पार्टी भी आयोजित करनी बंद कर दी है।जब से उनकी पत्नी का देहांत हुआ है वह उदासीन रहने लगा है ,बस काम में लगा रहता है। रमाबेन बंसल साहब की सेक्रेटरी बच्चों की आवश्यकताओं का ध्यान रखती है उनके संपर्क में रहतीं हैं।
मंगल समझ गया अगर बंसल परिवार के बारे में जानकारी हासिल करनी है तो रमा बेन के पास जाना पड़ेगा। एक बार को तो लगा क्यो दूसरे के फटे में टांग अड़ायी जाए हमेशा अपनी टांग फंसती है , बेकार की फजीहत हो जाती है। लेकिन दिमाग में जिज्ञासु नामक कीड़ा कुलबुला रहा था दूसरे उज्वला के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। सबने अपना अपना काम ख़त्म कर आफिस से निकलना प्रारम्भ कर दिया था।मंगल रमा बेन की टेबल की तरफ चल दिया,रमा बेन घर जाने के लिए खड़ी हो गई थी।मंगल ने लपक कर उनका भारी भरकम झोला उठा लिया। रमा बेन अधेड़ उम्र की हंसमुख औरत थी ,मंगल को देखते ही बोली," क्या बात है रे बच्चे कुछ काम है क्या ?"
मंगल ," नहीं नहीं काम क्या होगा,वह तो आपको इतना भारी बेग ले जाते देखा तो सोचा आपको आपकी गाड़ी तक पहुंचा देता हूं। वैसे इस बैग में ऐसा क्या लातीं है जो इतना भारी है सारा घर का सामान लेकर घूमती हैं क्या?"
रमा बेन हंस पड़ी और बोली ," सहदेव सर का भांजा तो बहुत मजेदार है , आफिस की सब लड़कियां तुम पर फिदा हो रही है तुमको पता है न।"
मंगल झेंपते हुए," नहीं नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।"
रमा बेन :" उस दिन बंसल सर का घर मिल गया था? ठीक से काम करवा दिया था।"
मंगल ," हां उसमें तो कोई परेशानी नहीं हुई थी। एक बात समझ नहीं आई उज्वला जी की शादी कैसे अजीब आदमी से हो रही है।"
रमा बेन आश्चर्य से बोली ," तुम्हें कैसे पता उज्वला की शादी किस से हो रही है?"
मंगल :" मैं उससे एक बार होटल में मिला था बहुत बदतमीज इंसान है।"
रमा बेन :" जब से सर की पत्नी की मृत्यु हुई है सर ने घर में दिलचस्पी लेनी बंद कर दिया है।
नौ दस बजे तक रात को यहीं आफिस में बैठे रहते हैं ,काम करते रहते हैं, अपनी ‌सेहत का भी ध्यान नहीं रखते है। बच्चों को कुछ ज़रुरत होती है तो मुझे फ़ोन कर देते हैं, मैं जो कर सकतीं हूं कर देती हूं। उज्वला अंग्रेजी में बीए कर रही है घर और भाई बहन की देखभाल भी करती है।हमारी फेक्ट्री का माल जो कम्पनी खरीदती है उसके मालिक  से बंसल सर ने उज्वला की शादी पक्की की है जिससे व्यापार में रिश्ते मजबूत हो सकें। ।"
मंगल :" आप मिली हो उससे ?"
रमा बेन :" अनिल मेहरा नाम है उसका ,कई बार आता है आफिस में मीटिंग और डील के लिए।बड़े अदब से मिलता है सब से। देखने में कुछ खास नहीं है उम्र में भी उज्वला से कुछ ज्यादा है लेकिन बहुत पैसे वाला है।"
मंगल को समझ नहीं आ रहा था उस आदमी के दो रूप हैं, यहां आफिस में उसके व्यवहार से सब खुश हैं और वहां होटल में वह कितना गलत व्यवहार कर रहा था। रात भर मंगल को नींद नहीं आई , उसे बड़ी तकलीफ़ हो रही थी कोमल सी उज्वला को उस दैत्य के साथ कल्पना कर के दूसरे तुषार के द्वारा मारे गए डंडों से पीठ पर जलन हो रही थी।
अगले दिन मंगल आफिस गया तो सहदेव ढेर सारा काम लेकर तैयार बैठा था । सख्ती से चेतावनी देते हुए बोला ," जितना भी काम तुम्हारी टेबल पर रखा है आज खत्म होना चाहिए ‌,वरना महीना खत्म होने से पहले तुम्हारी नौकरी खत्म समझो।"
मंगल काम कैसे करना है समझ गया था और नौकरी खोना नहीं चाहता था इसलिए गम्भीरता से समय सीमा में काम ख़त्म कर दिया। पहली बार जिन्दगी में टिक कर इतनी देर बैठ कर काम किया होगा। उसे कोई बहाना समझ नहीं आ रहा था उज्वला के घर जाने के लिए या उससे बात करने का लेकिन बैचेनी बहुत हो रही थी उससे मिलने की।
उधर उज्वला की आंखों के सामने न चाहते हुए भी बार बार मंगल का चेहरा आ जाता। अरमान हर समय मंगल की बातें करता , कैसे उसने अरमान को बचाया, तुषार से डंडे खाएं , तुषार की अकड़ निकाल दी। वह कई बार बोला ," दीदी मंगल भाई को एक बार घर बुला लो ,फोन नं है मेरे पास । मैंने एक बार ढंग से धन्यवाद भी नहीं बोला उनको।" चाह तो उज्वला भी यही रही थी लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। अरमान के कहने पर उसने सोचा बच्चे का मन रखने के लिए कोई बहाना ढूंढ कर मंगल को बुलाने में कोई बुराई नहीं है। अगले दिन उसने शावर के लट्टू को बहुत जोर से घुमाया जिससे वह ढ़ीला हो गया और रमा बेन को फोन कर दिया जिससे वह मंगल को बंगले पर भेज दें।मंगल की मनचाही मुराद पूरी हो गई वह तुरंत रवाना हो गया। उज्वला उसको देखते ही तुरंत बाथरूम में ले गईं और उसे वह शावर दिखा दिया जो ठीक करना था। मंगल ने जैसे ही शावर का लट्टू घुमाया एकदम से पानी बरसा और उसकी शर्ट गीली हो गई। उसने अपनी शर्ट उतारी और शावर ठीक करने में लग गया। पीछे खड़ी उज्वला के दिल की धड़कनें बेकाबू होने लगी।मंगल की मजबूत कद काठी और काम करते वक्त उसकी मांसपेशियों का हिलना ,वह बस देखती रह गई। इससे पहले उसने किसी पुरुष की तरफ इतना आकर्षण महसूस नही किया था ।मंगल जब ठीक करके पलटा तो वह मंत्रमुग्ध सी खड़ी रही अपनी जगह से हिल भी नहीं सकीं। मंगल मुस्कुराते हुए उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला,"लो ठीक कर दिया।" वह बिल्कुल उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसके बालों से आती गुलाब की खुशबू और देह की ऊष्मा से वह मदहोश हो रहा था। उज्वला के माथे पर मंगल की सांसों की छाप उसकी धड़कनों को और तीव्र कर रही थी वहीं उसकी सांसें मंगल की छाती से टकरा रही थी। मंगल अगर जरा सा भी आगे झुकता तो उसके लब उज्वला के माथे को छू लेते और उसको तीव्र उत्कंठा हो रही थी ऐसा ही कुछ करने की। तभी अरमान की आवाज सुनाई दी ," मंगल भाई कहां हो आप,आपकी बाईक मैं ने बाहर खड़ी देखी है।" दोनों जैसे होश में आए एकदम से अचकचा कर अपने अपने स्थान से पीछे हो गए। उज्वला शरमा कर बाहर आ गई और मंगल अपनी शर्ट पहनते हुए बाहर आया। अरमान को देखते ही बोला ," और यार कैसा है,चोट में दर्द तो नहीं। चल तुझे डाक्टर के पास ले चलता हूं एक बार और ड्रेसिंग करवा देता हूं। तुषार तो कुछ नहीं कहता अब?"
अरमान :" नहीं भइया अब वह माफी मांग चुका है, और अब मेरे रास्ते में बिल्कुल नहीं आता है।"
मंगल अरमान को लेकर डाक्टर के पास चला गया जब वापस आया तो उज्वला चाय नाश्ता तैयार करके बैठी थी। सेंडविच खाते हुए मंगल बोला ," एक बात पूछनी थी आप उस बदतमीज आदमी से शादी क्यों कर रही हैं?"
उज्वला ," पापा ने मुझसे पूछे बिना एक दम से मेरी शादी पक्की कर दी।सबके सामने वह बहुत मधुरता से पेश आता है पता नहीं क्यों  उस दिन वह अपने दोस्तों के सामने इस तरह से व्यवहार कर रहे थे। मैंने जब कल पापा से इस बारे में बात की तो वो गुस्सा हो गए।उनको लगता है मुझे गलतफहमी हो गई है या मैं बहाना बना रही हूं शादी न करने का। " उज्वला बहुत उदास लग रही थी।
मंगल :" तो अब आप क्या करोगी?"
उज्वला :" अगर मैं पापा के खिलाफ जाती हूं तो वो मुझे घर से बाहर निकाल देंगे। मेरे दोनों भाई बहन को मेरी आवश्यकता है। शादी के बाद भी मैं उनकी मदद कर सकती हूं अगर मैं पापा की इच्छा से शादी करती हूं।"
मंगल :" आपकी एक बहन भी है मुझे नहीं पता था , कितनी बड़ी है?"
उज्वला:" वह कालेज में इसी साल आई है ।वह पता नहीं क्यों इतनी गुमसुम और परेशान रहती है, पूछती हूं तो बताती नहीं है कुछ।शायद सोचती है अपनी परेशानी बताएगी तो मेरा बोझ और बढ़ जाएगा।।"
मंगल:" जब आपकी मम्मी इस दुनिया से गई थी तब आप भी इतनी बड़ी थी , अपने सब संभाल लिया था। वह भी सब संभाल लेगी। इस कारण से आप अपनी जिंदगी खराब नहीं कर सकती उस दानव से शादी कर के। वह उस दिन इतना बुरा बरताव कर रहा था आगे तो बिल्कुल भी इज्ज़त और प्रेम नहीं करेगा। आपको उस जैसे से नहीं ऐसे बंदे से शादी करनी चाहिए जो आपका बहुत खयाल रखें, आपसे प्रेम से बोलें,कोई आपके साथ बदतमीजी करें तो उसकी ज़बान खींच ले।कोई आपको जोर से पकड़ ले तो उसका हाथ तोड़ दे।"
मंगल की बातें सुनकर उज्वला का दिल पिघलता जा रहा था, उसे अपनेपन का अहसास हो रहा था।उसे विश्वास नहीं हो रहा था इतनी कम जान पहचान के बावजूद उसने मंगल से अपने मन की हर बात कैसे कर ली। उसको बहुत हल्का सा महसूस हो रहा था,कोई नहीं था जिससे वह अपनी चिंता बांट सकें। वह आंखें फाड़े मंगल को देख रही थी, जब मंगल चुप हुआ और उसे अपनी तरफ एकटक देखते पाया तो उज्वला ने पलकें झुका कर धीरे से पूछा," ऐसा बंदा हमें कहां मिलेगा?"
मंगल उज्वला का एक हाथ अपने दोनों हाथों में लेकर बोला ," हम है न, कभी आप पर आंच नहीं आने देंगे। आपकी आंखों में कभी आंसू नहीं आने देंगे।"
उज्वला अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली :" आप जो मन में आ रहा है बोलें जा रहें हैं। कोई सुन लेगा तो शामत आ जाएगी। वह जो आंटी है जो खाना बनाती है और घर के सारे काम में हमारी मदद करती है , पापा को सब बातें बताती है।आप जाइए यहां से।"
स्थिति को समझते हुए मंगल तुरंत वहां से उठा और आफिस चला गया। वहां सहदेव ने जो काम उसकी टेबल पर सुबह रखा था आधे से ज्यादा तो वह कर गया था लेकिन जो बचा था उसको करने में उसका मन नहीं लग रहा था। तभी रीमि उसके पास आई और बड़े प्रेम पूर्वक बोली ," कुछ सहायता चाहिए क्या?" मंगल बिल्कुल बात करने के मूड में नहीं था लेकिन रिमी फिर भी एक और कुर्सी सरकार कर उसके पास बैठ गई और काम ख़त्म करने में उसकी मदद करने लगी।
जब घर पहुंचा तब भी खोया खोया सा रहा , चुपचाप एक जगह से उठ कर दूसरी जगह बैठ जाता। बुध प्रकाश को समझ नहीं आ रहा था मंगल को क्या हो गया है, आज वह अपनी प्रेम कहानी मंगल से विस्तार से डिसकस करना चाह रहा था। मित्रा के साथ वह बहुत आगे बढ़ गया था ,अब तो अक्सर शाम को हाथ पकड़ कर दोनों किसी भी पार्क की बेंच पर बैठ कर एक दूसरे से घंटों बातें करते थे। अब बुध प्रकाश चाहता था मंगल उसकी अंगुठी ढूंढने में मदद करें और थोड़ी सी प्रेक्टिस करवा दे जिससे वह आराम से मित्रा के आगे शादी का प्रस्ताव रख सकें। लेकिन मंगल तो न जाने कौन सी दुनिया में है न कुछ सुन रहा है न कुछ बोल रहा है।पांच मिनट में चार रोटी ठूंस कर भागने वाला अब आधे घंटे से दो रोटी चबाने में लगा है। सब खाना खा कर जा चुके लेकिन वह वहीं बैठा न जाने क्या सोच रहा है। मंगल उन कुछ पलों से ही नहीं निकलना चाह रहा था जो उसने उज्वला के साथ बिताए थे। उज्वला ने गुस्सा नहीं किया था बल्कि शर्मा रही थी जिसका मतलब है उसके मन में भी वही भावनाएं हैं जो उसके मन में है।इस विचार से उसका मन इतना प्रफुल्लित हो रहा था कि उसके होंठ अपने आप मुस्कुरा रहे थे। खाने की मेज पर बैठी मनस्विनी अपने बेटे को आश्चर्य और चिंता से देख रही थी। कभी इतना बोलता और कूदता फांदता है कि चिंता होती है किसी मुसीबत में न फंस जाएं और आज इतना खामोश है कि फिक्र हो रही है कि कहीं दिमाग पर चोट तो नहीं आईं बिमार तो नहीं है। यह लड़का तो जो करता है टेंशन ही देता है। वह बोली ," क्या बात है मंगिया खाना जल्दी से क्यो नही खाता है और इतना कम क्यो खा रहा है?" मंगल बिना कुछ बोले आधा खाना छोड़कर अपने कमरे में चला गया। अगले दिन उसका मन उज्वला के पास जाने का कर रहा था लेकिन उसे लगा यह ठीक नहीं होगा।
आफिस गया तो वहां ढेर सारा काम उसका इंतजार कर रहा था। उसने सोचा आज काम में ही मन लगाया जाएं।उज्वला के बारे में सोचते रहने से कोई लाभ नहीं। शाम तक बड़ी तल्लीनता से वह अपने काम में लगा रहा। शाम को सहदेव ने देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ ,समय से बिल्कुल ठीक काम कर रखा था। सहदेव समझ गया मंगल में दिमाग और उर्जा बहुत है जिसका सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। उसे लगा मंगल फेक्ट्री में अधिक उपयुक्त रहेगा , और बाद में उसे कंपनी कि ओर से एमबीए करवाया जा सकता है।उसे लग रहा था मंगल बहुत उन्नति करेगा।
मंगल को घर जाकर भी चैन नहीं आया , अपने आप पर गुस्सा आ रहा था ,उज्वला का फोन नं तक नहीं लिया,कम से कम फोन पर बात कर लेता । अगले दिन उससे और सब्र नहीं हुआ , लंच के समय बाइक ली और उज्वला के घर चला गया । गेट के बाहर खड़े गार्ड ने कहा ," उज्वला मैडम घर में नहीं है थोड़ी देर में आने वाली है, तुम बगीचे में पड़ी कुर्सी पर बैठ कर उनका इंतजार कर लो। अरमान बाबा भी आने वाले हैं , उन्हें डाक्टर के पास ले जाना होगा।" गार्ड ने अपने आप ही अंदाजा लगा लिया आफिस से साहब ने अरमान की पट्टी कराने के लिए मंगल को भेजा है। मंगल बल्कि सोच रहा था अपने आने का क्या कारण बताएगा गार्ड को । मंगल कुर्सी पर बैठा इंतजार कर रहा था तो उसे लगा अंदर से किसी के रोने की आवाज आ रही है ‌ उसे कुछ अजीब लगा जब घर में उज्वला और अरमान नहीं है तो अंदर कौन रो रहा है।वह बिना सोचे-समझे घर के अंदर दाखिल हो गया और उस कमरे में पहुंच गया जहां से रोने की आवाज आ रही थी। वहां एक लड़की पंखे से साड़ी लटका कर एक स्टूल पर खड़े होकर आत्महत्या करने की कोशिश कर रही थी। वह सुबक रही थी, मंगल तुरंत उस स्टूल पर चढ़ गया और इससे पहले की वह स्टूल गिरा कर लटक जाती मंगल ने उसके गले से फंदा निकाल दिया। वह लड़की रोते रोते बोली
" मुझे मर जाने दो, मैं जीना नहीं चाहती।"मंगल समझ गया यह उज्वला की बहन होगी, उसने शांत स्वर में कहा " पहले अपनी परेशानी तो बताओं क्यो मरना चाहती हो? अगर उसका हल निकलता होगा तो मत मरना और कोई हल नहीं हो तो कल मर जाना। एक दिन में क्या फर्क पड़ता है।"
आशिका मंगल को देखते हुए बोली," कौन निकालेगा मेरी परेशानी का हल । मैं इतनी बदनाम हो जाऊंगी कि मेरा जीना दुभर हो जाएगा।"
मंगल :" तुम एक बार समस्या तो बताओ,अगर मुझे लगा तुम्हारे मरने का कारण उचित है तो मैं स्वयं तुम्हारी मरने मैं मदद कर दूंगा।"
आशिका को बंदे की बातें कुछ अजीब तो लगी लेकिन फिर उसकी आंखों में देखा तो लगा विश्वास करके देखने में क्या हर्ज है। आज नहीं तो कल मरा तो कभी भी जा सकता है दूसरे उसका मरने का मन तो था नहीं,वह जिंदगी भरपूर जीना चाहती थी। वह बोली ," मेरे कालेज में मेरा एक सहपाठी है अमन वह मुझे ब्लेकमेल कर रहा है। पता नहीं कैसे उसके पास कुछ मेरी गंदी तस्वीरें हैं जो वह सबको दिखाने की धमकी दे रहा है। अभी तो शायद उसने किसी ट्रिक से वे तस्वीरें बनाई है लेकिन वह चाहता है एक रात में उसके कमरे में उसके साथ रहूं।तब वह मेरी असल में जैसी चाहे तस्वीरें खींच लेगा। अभी अगर वह झूठी तस्वीरें सबको दिखा देगा तो कौन विश्वास करेगा वे झूठी है, पापा तो गुस्से में आकर न जाने क्या कर दे।"
मंगल का दिल बहुत दुखी हुआ आशिका के लिए कैसे बिचारी अकेली इस मानसिक यातना से गुजर रही है। गुस्सा तो उस बाप पर आ रहा था जिसे होश नहीं उसके बच्चों पर क्या बीत रही है । उसका मन कर रहा था सबसे पहले उस बंसल का ही टेंटुआ दबा दिया जाए,बाप के नाम पर धब्बा है। उसने आशिका से कहा:" तुम मुझे उस लड़के का पता दो ,कहां रहता है और कितने लोग शामिल हैं इस काम में?"
आशिका ने उसको पता बताते हुए कहा :" वह बहुत गन्दा लड़का है ,हो सकता है नशा भी करता हो। उसके साथ अक्सर विकास रहता है, वे दोनों किसी के साथ बातचीत भी नहीं करते हैं।एक वीराने से प्लाट पर दो कमरे का मकान बना है वे दोनों वहीं रहते हैं।"
मंगल :" ठीक है , मैं कोशिश करता हूं आज रात ही उसकी अक्ल ठिकाने लगाने की।" कहकर वह उज्वला से बिना मिले ही आफिस चला गया। शाम को उसने तीन चार दोस्तों को घर पर बुला लिया। उन्हें सारी स्थिति से अवगत करा रहा था कि बुध प्रकाश भी बीच में आ गया। जब उसे ज्ञात हुआ कि यह मीटिंग किस लिए बुलायी गई है तो वह  गुस्सा होते हुए बोला :" अपनी चौधराहट मत दिखाओ, पिताजी की मदद लो, कुछ ऊंच-नीच हो गई तो फंस जाओगे।" लेकिन मंगल को लग रहा था पहले देख तो लें अमन कितना नींच है कहीं अकेली आशिका को ही तंग कर रहा हो उसकी तस्वीर को फोटोशॉप करके ।उसे लगा हालात समझ कर पुलिस की सहायता ली जाएं।रात के ग्यारह बजे छः लोग तीन बाइक पर सवार होकर अमन के ठिकाने पर पहुंचे। दो बन्दों को बाहर पहरेदारी के लिए छोड़ कर मंगल ने तीन दोस्तों के साथ अंदर जाने के लिए दरवाजा खटखटाया। अमन ने बड़े इत्मीनान से दरवाज़ा खोला और अजनबियों को बाहर खड़ा देखकर अकड़ कर बोला :" क्या है बे, कौन हो क्या चाहते हो।" पैर से दरवाज़ा और हाथ से अमन को धक्का देते हुए मंगल अपने दोस्तों के साथ अंदर घुस गया। कमरा बहुत गन्दा था कुछ शराब की खाली बोतलें भी पड़ी थी इधर उधर।
जब मंगल ने अमन को दो जोरदार तमाचे मारकर कहा :" क्यो बे साले लड़कियों को ब्लेकमेल करता है ?" तो वह घबरा गया।
विवेक भी गिड़गिड़ाने लगा ," नहीं हम ऐसा कुछ नहीं करते वो तो हम ने एक दो लड़कियों को पटाने के लिए ऐसा किया था सोचा था थोड़ी मस्ती हो जाएगी।" मंगल ने विवेक को जोर से मारते हुए कहा :" साले तेरी मस्ती हो रही थी  वहां एक मासूम लड़की आत्महत्या करने वाली थी। किसी को पता भी नहीं चलता वह क्यो मरी और तू बेशर्मों की तरह ऐश करता रहता। " वे दोनों घिघियाने लगे " आगे से ऐसा नहीं करेंगे, हमे माफ़ कर दो।" मंगल के दोस्तों ने भी एक एक घूंसा जड़ दिया,मंगल उन्हें रोकते हुए बोला :" मेरे सामने जितने भी ऐसी फोटो है सब डिलीट करो और कल जाकर जिन लड़कियों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे उनसे माफी मांगोगे।अगर उनके कल मेरे पास फोन नहीं आए तो समझ लेना कल की रात तुम दोनों की आखिरी रात होगी।" मंगल और उसके दोस्तों ने जब उनके फोन और लेपटॉप देखें तो दो तीन लड़कियों के फोटो ही तकनीक की मदद से गलत दिखाई हुईं थीं। यह उनकी शुरुआत थी आगे न जाने क्या क्या करते लेकिन उनको शायद सबक मिल गया था।
अगले दिन जब मंगल उज्वला के घर गया तो आशिका और उज्वला दोनों घर पर थी। उसको देखते ही आशिका उससे लिपट कर रोते हुए बोली :" आपका यह उपकार मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगी।अमन ने सुबह फोन करके माफी मांगी और बोला अब वह मुझे बिल्कुल तंग नहीं करेगा। " उज्वला को अजीब लगा जब उसने आशिका को मंगल से लिपट कर रोते हुए सुना, लेकिन जब सारी हकीकत पता चली तो वह भी रोने लगी। उसे सोच कर ही घबराहट हो रही थी कि जो आशिका करने वाली थी अगर उसमें सफल हो जाती तो वह क्या करती कैसे जी पाती अपनी बहन के बिना। मंगल घबराते हुए बोला :" यार तुम दोनों ने रोना क्यो शुरू कर दिया, तुम लोग सही हो खुशी हो या गम फटाक से आंसू टपका देते हो। अच्छा अब मैं चलता हूं।" उज्वला उसे बाहर तक छोड़ने आई आसपास किसी को न देख मंगल ने उसे खींच कर बाहों में भरते हुए कहा :" यार आप अपना फोन नंबर तो देदो, मिलने आता हूं तो आपको डर लगता है कोई शिकायत न कर दे, कम-से-कम फोन पर आपकी आवाज ही सुन लूं।" उसे लगा उज्वला अलग होने की कोशिश करेंगी लेकिन वह उसके बाहों के घेरे में खड़ी रही।
उज्वला अपने नम्र हाथों से मंगल के गालों को छूते हुए बोली :" खाना बनाने वाली आंटी दो दिन की छुट्टी पर गईं हैं इसलिए आज कोई डर नहीं है। फोन नं लेलों और बार बार मेरी सहायता करने के लिए…।"
मंगल ने उसके होंठों पर उंगली रखते हुए कहा:" इस तरह की बातें मत करो। मैं ने कहा था न कि मैं तुम्हें परेशान नहीं देख सकता हूं इसलिए तुम्हारी हर तकलीफ़ अब मेरी हैं। तुम अपने पापा से बात करो अगर वो मान गए तो ठीक नहीं तो मैं तुम्हें उठा कर ले जाऊंगा।" मंगल को पता नहीं कब वह आप से तुम पर आ गया लेकिन जब मंगल इतने अधिकार और प्रेम से बात करता तो उज्वला का दिल दिवाना हो जाता। उसे लगता मंगल कितना अलग है उससे,निडर अपने मन की करने वाला फिर भी इतना नरमदिल।एक वह है अपने पिता से भी अपने मन की बात बेझिझक नहीं बोल पाती,सब को खुश करने के चक्कर में कुंठित जीवन जीने को तैयार। उसने मंगल से अलग होते हुए कहा," ठीक है मैं आज पापा से बात करती हूं,अगर नहीं माने तो आगे क्या करना है सोचते हैं।"
मंगल :" डरना मत और डर के कारण कोई ग़लत निर्णय मत लेना। मैं तुम्हारा हर स्थिति में साथ दूंगा।" रात को जब उज्वला ने अपने पिता से बात की तो वो गुस्से से बिफर पड़े। " तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, अच्छा भला इंसान हैं जिससे मैं तुम्हारी शादी करवा रहा हूं। मैं जानता हूं जो फटिचर तुम्हें उल्टी-सीधी बातें सिखा रहा है वह तुम्हें सुखी रोटी से अधिक कुछ नहीं दे पाएगा।तुम यह क्यो नही समझ रही हो अगर तुम अनिल से शादी करती हो तो हमारे बिजनेस को कितना लाभ होगा।" उज्वला को पिता का यह रूप देखकर बहुत दुख हुआ, मां के सामने वो कितने स्नेही थे, न जाने इतना क्यो बदल गए। लेकिन उज्वला किसी भी परिस्थिति में समझौता नहीं करना चाहती थी , उसने साफ मना कर दिया।
आफिस में पहुंचते ही बंसल ने मंगल को अपने कक्ष में बुलाया और कहा :" तुम अपने आप को समझते क्या हो, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बच्ची को फुसलाकर अपने जाल में फंसाने की।"
मंगल :" मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया,मैं केवल उज्वलाजी को खुश देखना चाहता हूं। वह आदमी अपनी बदसलूकी से उज्वलाजी के कोमल स्वभाव को कुचल देगा। मैं यह नहीं कह रहा आप उनकी शादी मुझ से करो ,यह मैं समझ गया हूं मैं उन्हें वह एशो-आराम नहीं दे सकता जिनकी वे आदी हैं। मैं तो केवल निश्छल प्रेम समय और खुशियां ही दे सकता हूं। और आप क्या कर रहे हैं अपने बच्चों को प्रेम और सुरक्षा नहीं दे रहे हैं जिसके कारण वो कितनी बड़ी मुश्किल में फंसते जा रहे थे। "
अगले दिन आफिस की छुट्टी थी, बंसल घर में था और पुत्री का उदास चेहरा देखकर थोड़ा व्यथित भी महसूस कर रहा था। उसने सोचा अनिल मेहरा को घर बुलाया जाए और उज्वला की शंका दूर की जाए। खाना खाने के बाद बंसल ने अनिल से कहा :" क्या बात है आपने ऐसा क्या कर दिया जो उज्वला शादी करने से इंकार कर रही है?"
अब तक सबसे हंसकर ,मिठास भरी बातें करने वाले अनिल के चेहरे पर गुस्से की लकीरें उभरने लगी थी।
अनिल लापरवाही से बोला :" कुछ नहीं दोस्तों के साथ थोड़ी सी पीने का आग्रह कर रहा था और ये गुस्से में उठ कर चली गई।"
उज्वला :" आप आग्रह नहीं कर रहे थे मुझसे जबरदस्ती कर रहे थे, गालियां दे रहे थे और इतने जोर से अापने हाथ दबाया कईं दिन तक दर्द रहा।"
अनिल गुस्से से बोला ," तो क्या करता अपने दोस्तों के सामने अपनी बेइज्जती होने देता?"
बंसल :" अगर वह शराब नहीं पीना चाहती थी तो तुम्हारी बेइज्जती हो गई। इतनी सी बात पर तुम उसे इतना कष्ट और अपमानित कर सकते हो तो आगे तुम पता पता नहीं क्या करोगे? मुझे नहीं लगता अब यह शादी मुमकिन है।"
 अनिल गुस्से से बोला :" बंसल तुम गलती कर रहे हो। मैं सारे आर्डर निरस्त कर दूंगा, तुम्हें बहुत नुक्सान होगा।"
बंसल :" तुम भी अच्छी तरह जानते हो इतने कम दाम में और इतनी अच्छी क्वालिटी का माल तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा। मैं दूसरी कंपनी से बात कर लूंगा, तुम मेरी चिंता मत करो।बस अब यहां से चले जाओ ।
तीनों बच्चे अपने पिता की तरफ आश्चर्य से देख रहे थे उन्हें महसूस हुआ उनके पिता उन्हें वापस मिल गए। तीनों उनसे लिपट गये तो बंसल की आंखें भर आईं। " मुझे माफ़ कर दो मैं अपनी जिम्मेदारी भूल गया था।" फिर उज्वला की तरफ देखते हुए बोले :" तेरे उस पगले ने याद दिला दी।कल ही सहदेव से बात करता हूं और तेरा रिश्ता लेकर मंगल के घर जाता हूं। अब तो खुश हैं न।" उज्वला हां करती हुई दूसरे कमरे में चली गई,मंगल को खुशखबरी देने।

Friday, 1 December 2017

संवेदना




आज स्कूल में शिक्षक अभिभावक की मीटिंग का दिन था और चुंकि मैं दसवीं ग्यारहवीं कक्षा को गणित पढ़ाती हूं तो सभी अभिभावकों के कोप का घड़ा मेरे सिर पर फूट रहा था। बच्चों के कम अंक आने का कारण उन सब की नजरों में मैं थी क्योंकि मुझे पढ़ाना नहीं आता, मैं बच्चों पर ध्यान नहीं देती , मैं लापरवाह हूं आदि आदि। मां बाप चीख चीखकर अपनी बात को ऊपर रखने का प्रयास कर रहे थे, कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था। उत्तर पुस्तिका हाथ में लिए एक एक अंक के लिए ऐसे झींक रहे थे जैसे कयामत आ जाएगी अगर एक अंक भी कम मिल गया तो। कुछ तो इतनी बदतमीजी से बोल रहे थे, फिर बच्चों को क्या इज्जत करना सिखाएंगे। ऐसे बच्चे सिर झुकाए खड़े थे , जानतें थे अगले दिन उनकी शामत आएगी , जितना अभी अभिभावक चिल्लाएंगे अगले दिन उतनी शिक्षिका उनपर अपनी खुन्नस निकालेगी। रिश्तों के सारे समिकरण ही बिगड़ गये हैं।
अपने स्कूल समय की एक शिक्षिका की याद आ रही थी, हिंदी पढ़ाती थी और अगले दिन अपनी चीर परीचित अंदाज और तीखी आवाज में सुना सुना कर बेहाल कर देती थी।
"हमारा तो दिमाग खराब कर देते तुम्हारे मां बाप। अरे खुद तो गधे पैदा कर देते हैं और हमारे सिर पर छोड़ देते हैं , घोड़े बना दो। कोई जादुई छड़ी है हमारे पास जो हम ऐसा कर दें।"
तब हम सब सिर झुकाए मुंह पर रूमाल रखकर बहुत हंसते थे लेकिन आज बिल्कुल हंसी नहीं आ रही थी। सुबह से बनावटी मुस्कान और धैर्य का चोला ओढ़कर अभिभावकों का सामना कर रही थी और एक एक अंग अकड़ रहा था। ध्यान अपने तीन वर्ष के पुत्र बिट्टू में पड़ा था ,रात भर बुखार के कारण बैचेन रहा न खुद सोया नहीं सोने दिया।
सुबह इतनी थकान लग रही थी कि स्कूल आने का मन नहीं कर रहा था, बस एक गिलास दूध पीकर निकल गई। बिट्टू को अपने पति आलोक की देखभाल में छोड़ कर आयी हूं ‌। आधे दिन की छुट्टी ली है उन्होंने, दो बजे तक आफिस जाएंगे।एक बज गए हैं जल्दी से काम निपटा कर पर्स उठाकर निकल ही रही थी कि एक बच्चा प्रधानाचार्य महोदय का संदेश लेकर आया सब स्टाफ को हाल में इक्ट्ठा होना है। छः महीने पहले ही नये प्रधानाचार्य यदुनंदन वर्मा की नियुक्ति हुई है ‌। बड़ी आदर्शवादी बातें करते हैं,जब देखो तब शिक्षकों और शिक्षण संस्थाओं के गौरवशाली परंपरा की बातें करते हैं।इस समय बिल्कुल मन नहीं था इन किताबी बातों को सुनने का , लेकिन मजबूरी वश जाना पड़ा। सब के बैठने के बाद वो शुरू हो गये लेकिन मेरा ध्यान भटक रहा था , बिट्टू का स्वास्थ और समय सीमा दोनों चिंता का कारण बने हुए थे।
संक्षिप्त में उनका कहना था कि," हम सब भाग्यशाली हैं कि हम ऐसे प्रोफेशन से संबंधित है जिसका भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च स्थान है ‌। जहां गुरु को परमात्मा के समक्ष खड़ा करके जो गौरव प्रदान किया है हमे उसकी गरीमा का मान रखना चाहिए। हमें अपने क्षात्रो और क्षात्राओं के साथ वैचारिक और भावनात्मक मेल बढ़ाना चाहिए जिससे हम उनकी समस्याओं को समझ कर उनकी मदद कर सकें, बदले में वे हमें वह सम्मान देंगे जिसके हम हकदार हैं।"
अब वर्मा जी को कौन समझाए कि हर कक्षा में पचास साठ बच्चे होते हैं और एक एक बच्चे की समस्याओं को समझने की लिए न समय और न उर्जा होती है शिक्षकों के पास । बिचारा शिक्षक हांड मांस का बना  मानव है कोई काल्पनिक शक्तिमान नहीं जिससे इतनी क्षमता की उम्मीद की जाती है। पहले ही उसके अपने पारिवारिक और शारीरिक जरूरतों के कारण कंधे झुकें होते हैं और बोझ लादने में लगें हैं उस बिचारे पर , कैसे करेगा वह इतना सब ।वर्माजी के पास इसका भी समाधान था।
" बस थोड़ी-सी संवेदना पैदा करनी है आपको अपने दिल में, अपने छात्रों के लिए। ‌फिर देखिए रास्ते अपने आप खुलते चले जाएंगे। उनमें इतना विश्वास जगाएं कि वे अपने आप बेझिझक अपनी समस्या लेकर आपके पास आएं। समस्याएं और परेशानियां पता हो तो हल निकालना मुश्किल नहीं है ‌। इसलिए आवश्यक है कि अपने और छात्रों के बीच संवेदना के सेतु का निर्माण करें ‌।" मन कर रहा था इस समय खड़े होकर एक सलाह मैं भी दूं वर्माजी को ' सर थोड़ी सी संवेदना आप भी पैदा करें अपने अंदर और शिक्षकों का वेतन बढ़ा दें , जिससे उनका कुछ बोझ कम होगा तब शायद वो अपने कर्म पर अधिक ध्यान देंगे।'
वर्माजी का भाषण समाप्त हो गया था सब तितर-बितर हो रहें थे लेकिन उन्होंने मुझे आवाज दी ।यह सब एक जंमाही का किया धरा था अपने आप पर गुस्सा आ रहा था क्यों नहीं मुंह भींच लिया कसकर। अब उनके भाषण की एक ओर खुराक मुझे झेलनी पड़ेगी ‌|
वर्मा जी :" लगता है विभा मैडम आपको मेरी बातें कुछ पसंद नहीं आई।"
मैं :" नहीं सर आप एकदम सही कह रहे हैं। आपसे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।"
वर्मा जी :" उम्र के एक पड़ाव पर आकर लगता है हम सारी जिंदगी बेकार की इच्छाओं की पूर्ति करने में लगा देते हैं। अपने जीवन में मैं ने जो महसूस किया वहीं ज्ञान आप सब को बांटना चाहता हूं। मैं ने आपके प्रमाणपत्र देखें थे ,आप बहुत होशियार छात्रा थी ।अगर आप थोड़ी संवेदनशील हो जाती है तो आप इस स्कूल की एक बेहतरीन शिक्षिका होंगी। अच्छा एक बात बताओ क्या आप शिक्षिका इसलिए है कि आप शिक्षिका बनना चाहती थीं या मजबूरी में यह काम करना पड़ रहा है। "
मैं :" (एक और झूठ), " नहीं सर मैं तो हमेशा से ही शिक्षिका बनना चाहतीं थीं,स्कूल समय से ही शिक्षकों को मैं अपना आदर्श मानती…।"
बात और आगे बढ़ती लेकिन वर्मा जी का फोन बजने लगा और वो आगे बढ़ गये।
शिक्षिका बनने का विचार तो जीवन के किसी भी पल में नहीं आया। तीन चार भाई-बहनों के परिवार में शुरू से ही अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करते हुए एक सपना जरूर पलने लगा था,ऐसी नौकरी का जिससे पैसा ही पैसा बरसेगा। शुरू से ही अच्छे अंक प्राप्त होते थे,पढ़ाई में होशियार थी , आसपास वाले एकमत थे विभा जीवन में कुछ करके दिखाएंगी।
सपना था इंजीनियरिंग करके किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करूंगी, बहुत पैसा मिलेगा, विदेश आना जाना लगा रहेगा ,एक से एक कपड़े , गाड़ी और न जाने क्या क्या ‌। ऐसे ही साथ के किसी स्मार्ट से बंदे से विवाह करूंगी ,बस जीवन में और क्या चाहिए। बहुत मेहनत की रात दिन एक कर दिये , लेकिन किसी अच्छी सरकारी संस्था में चयन नहीं हुआ। इस असफलता ने इतनी कटुता भर दी,सारे जहां से शिकायत हो गई । लगा पिता जी ने थोड़ा पैसा बचाया होता तो कोचिंग और ट्युशन लेती , फिर कैसे नहीं होता। शिक्षा नीति, सरकार ,आरक्षण , मेरी किस्मत सब दोषी थे मेरी नज़रों में। फिर बस जिस कालेज में दाखिला मिला पढ़ती गई और शिक्षिका की नौकरी लग गई।
साधारण सी नौकरी और सामान्य सी शक्ल सूरत वाले आलोक से विवाह तो हो गया लेकिन उससे दिल से कभी नहीं जुड़ सकीं। कहीं न कहीं जिंदगी ठहर सी गई,बस बिना उत्साह के ढो रही थी ,खुशी की कोई लहर नजर नहीं आती थी। जब बिट्टू पैदा हुआ तब जीवन में कुछ अच्छा लगने लगा। आलोक सीधे ,शांत स्वभाव के इंसान हैं , वैसे कोई कमी नहीं है उनमें, बस मैं ही अपने ख्वाबों से नहीं निकल पा रही हूं। जब चाबी से दरवाज़ा खोला तो ढ़ाई बजे थे । हमेशा की तरह आलोक बिट्टू को गोद में लेकर बैठें होंगे और मेरे पहुंचते ही  उसे मुझे थमा कर चुपचाप आफिस चले जाएंगे। किसी भी बात पर गुस्सा करना या टोकना तो वो जानते ही नहीं थे। लेकिन घर में बिल्कुल सन्नाटा था ,न कोई बल्ब जल रहा था न कोई पंखा चला रहा था। मैं घबरा गई , बिट्टू की तबीयत अधिक खराब हो गई होगी और उसे अस्पताल ले कर गए होंगे। लेकिन टेबल पर एक कागज रखा देखा , उठाया तो मेरे लिए संदेश था , कोई संबोधन भी नहीं था।
मैं बिट्टू को लेकर अपने मां पिताजी के घर जा रहा हूं। मैं जानता हूं मैं तुम्हारी पति की छवि के मापदंड में खरा नहीं उतरता हूं। लेकिन इसमें मेरा कोई दोष नहीं है । मैं पिछले पांच साल से तुम्हारी बेरूखी बर्दाश्त कर रहा हूं  अब और नहीं सहन होता है। बिट्टू से जब मिलना हो यहां आकर मिल लेना।
मुझे विश्वास नहीं हुआ आलोक ऐसा कैसे कर सकते हैं लेकिन मैं इतना थकी हुई थी मानसिक और शारीरिक रूप से कि बस पलंग पर लेट गई और सो गई। इतनी भी ताकत नहीं थी रसोई में जाकर कुछ खा लेती या कपड़े बदल कर तरोताजा हो जाती। जब आंख खुली तो आठ बज रहे थे, चारों तरह अंधेरा था ठंडक और अकेला पन था।
उठकर बत्तियां जलाईं फिर रसोई में जाकर दूध और ब्रेड़ खाकर , खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई। घंटों बाहर अंधेरे में शुन्य को ताकती रही,न कुछ सोच पा रही थी न कुछ काम करा जा रहा था। ऐसा लग रहा था आलोक मेरी बेरूखी से जितना थक गए था उससे अधिक मैं अपनी उदासीनता से हार गई थी। पता नहीं कब पलंग पर लेट गई और अगले दिन भी लगभग सोती रही। रविवार था , छुट्टी थी फिर भी न जाने क्यों बिट्टू से मिलने नहीं गई जिसमें मेरी जान बसती थी।
जब भी इंसान की जिंदगी में कोई घटना या दुर्घटना घटित होती है जिससे उसका अस्तित्व डगमगा जाता है तब वह पांच चरणों से होकर गुजरता है। सबसे पहले उसे धक्का लगता है कि यह क्या हो गया है। मुझे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा था ऐसे कैसे आलोक और बिट्टू मेरी जिन्दगी से अलग हो गए और इसका मेरे जीवन पर क्या असर होगा। बिट्टू के बिना कैसे रहुंगी और आलोक की खामोश उपस्थिति कितना बड़ा सहारा थी मेरे लिए यह आज उनकी अनुपस्थिति में समझ आ रहा था। आखिर उन्होंने ऐसा किया क्यों ,एक दम से इतना बड़ा कदम कैसे उठा लिया, पहले कभी अपनी नाराज़गी प्रकट नहीं की। मेरे दिमाग में इस तरह के विचारों की उथल-पुथल चलती रही और अगले दिन मैं स्कूल चली गई। स्कूल में मन नहीं लग रहा था और मेरा सबसे पसंदीदा छात्र आदित्य भी नहीं आया था।
आदित्य को मैंने दसवीं कक्षा में पढ़ाया था और अब मैं उसकी कक्षा शिक्षिका हूं। इतना होशीयार बच्चा कि एक बार में उसको पाठ समझ आ जाता था और कईं बार कमजोर बच्चों को भी समझा देता था जब मैं झुंझला जाती थी। मेरे सारे काम भाग भाग कर करता , कभी रजिस्टर लाना तो कभी कापियां।
हमेशा मुस्कुराता रहता और उसमें मुझे अपना बचपन नज़र आता । मैं चाहती थी कि मैं उसकी सहायता करूं और वह जीवन में सफल हो अपने सपने पूरे करें। आज न जाने क्यों मुझे उसकी अनुपस्थिति बहुत अखर रही थी। उसके घर के पास रहने वाले एक छात्र से मैंने पूछा आदित्य क्यों नहीं आया तो उसने जो उत्तर दिया कुछ समझ आया कुछ नहीं। छात्र :" उसका एक्सीडेंट हो गया है और वह अस्पताल में भर्ती है।"
 मैं (सुनकर मेरी आवाज़ कुछ तीखी हो गई) " क्या, क्या कह रहे हो।"
वह बच्चा घबरा गया ,हकलाता हुआ बोला :" मैडम उसको बहुत चोट आई है,पैर काट… ।"
मैं (बीच में ही बोल पड़ी):" क्या बकवास कर रहे हो,हाथ पैर में फ्रेक्चर हुआ होगा।"
वह लगभग रोते हुए हां में हां मिलाते हुए बैठ गया।स्टाफ रूम में सब टीचर कहते हैं " विभा मैडम आप इतनी कड़क और रोबदार आवाज में बोलती हो कक्षा में कोई भी बच्चा चूं तक नहीं कर सकता।" कक्षा में अनुशासन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है। मैंने आफिस से आदित्य के पिताजी का फोन नं लिया और उस अस्पताल का पता किया जहां उसका इलाज चल रहा था ‌
अस्पताल में आदित्य की माताजी चित्रा अपनी बहन के साथ आईसीयू के वेटिंग रूम में बैठी थी , आंखें सूजी हुई थी। मुझे देखते ही वह जोर जोर से रोने लगी, मुझे लग रहा था बिचारी इतना बड़ा सदमा कैसे बर्दाश्त करेंगी।
वह बोल रही थी:" विश्वास नहीं होता एकदम से ऐसा कैसे हो गया,शिक्षक दिवस आने वाला है आपके लिए कुछ तोहफा खरीदने जा रहा था, अपने पापा के साथ स्कूटर पर। इतना खुश था ,न जाने अचानक क्या हुआ आगे वाली गाड़ी ने ब्रेक लगाया,आदी के पापा सम्भालते इससे पहले पीछे से तेज गति से आती गाड़ी ने टक्कर मारी ‌। इतने जोर से धक्का लगा कि आदी उछल कर सड़क गिर गया। एक दो गाड़ियां उसके पैरों पर से गुजर गयीं। एक टांग तो डाक्टर ने कहा बच जाएगी लेकिन एक को काटना पड़ा। "
सुनकर मैं सकते में आ गई, इतना छोटा बच्चा और इतना बड़ा हादसा। मैं और चित्रा बहुत देर तक रोते रहे , इसमें शायद मेरे दुख का रोना भी शामिल था। शाम तक वहीं बैठी रही ,लौटी तो शरीर शिथिल हो रहा था ‌। वहां सब दुखी थे इसलिए दुख सांझा लग रहा था, लेकिन घर में अकेली थी तो बहुत बेबस महसूस कर रही थी।
इंसान जब समझ जाता है कि जो घटित हुआ है वही शाश्वत है तो सदमे से निकल कर वह अपने आप को धिक्कारने लगता है। अब मुझे लग रहा था आज आलोक मेरी जिन्दगी से चले गए हैं तो सारी गलती मेरी हैं।
जिंदगी को मजाक समझ रही थी कभी गंभीरता से सोचा नहीं मेरी उदासीनता का आलोक पर क्या असर पड़ रहा था । उनसे एक दूरी सी बना कर रखीं,उनका कभी ध्यान नहीं रखा। और कोई होता तो लड़ता झगड़ता, अपनी बात मनवाता, जबरदस्ती अपने हिसाब से चलाता लेकिन आलोक तो बिचारे इंतजार करते रहे। वर्मा जी सही कह रहे थे स्कूल में भी कठोरता को ढाल बनाकर बच्चों को अपने करीब नहीं आने दिया।पाठ तीन बार समझाया, जिससे साठ प्रतिशत बच्चे समझ गये और मैं आगे बढ़ गई। बाकी बच्चों की जिम्मेदारी लेना मैंने आवश्यक नहीं समझा। सारी रात अपने आप को धिक्कारने में बिता दी। अगले दिन फिर स्कूल से अस्पताल पहुंच गईं। आज आदित्य से मिलने की इजाजत दे दी थी डॉक्टर ने। इतनी सारी मशीनों और ट्यूबों में वह नज़र नहीं आ रहा था,उसको देखकर मेरी आंखें भर आईं।
बाहर चित्रा रोती जा रही थी और अपने आप को कोस रही थी।
"पता नहीं क्या पाप किया था मैंने जो यह दिन देखने को मिला। आदी के पापा के साथ मैं जा रही थी बाजार,न जाने क्या सोच कर आदी को भेज दिया। मैं होती और भगवान दोनों टांगें ले लेता तो भी उफ नहीं करती। पर मेरे मासूम बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा था जो उसके साथ ऐसा किया। किसको दोष दूं इस हादसे के लिए किसकी गलती थी जो मेरे बच्चे की जिंदगी बर्बाद हो गई। " चित्रा की बातें सुनकर मेरे भी आंसू बहने लगे। मैं सोच में पड़ गई मेरे से एक मौका छिन गया और मैंने सारे जहां को कोस लिया  सबको दोषी मान लिया।इस बच्चे का तो शरीर का एक अंग छिन गया और न जाने आगे क्या क्या तकलीफें सहनी पड़ेगी। वह किसको गुनहगार माने अपनी इस तकलीफ के लिए। आज बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी अपने आप पर, जैसे पानी कहीं इकट्ठा हो जाता है सड़ांध पैदा करता है अपना जीवन भी ऐसा लग रहा था ठहरा हुआ बदबूदार। चित्रा के आगे अपने आप को इतना बौना महसूस कर रही थी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई चुपचाप निकल गई वहां से।
रात भर उल्टे-सीधे सपने आते रहे। बिट्टू भागता हुआ आ रहा है मैं उसे गोदी में लेने के लिए बांहें फैलाएं खड़ी हूं अचानक वह गिर गया उसका एक पैर नही है। मैं भागी उसे उठाने के लिए , रोते हुए उसे गोदी लिया तो देखा वह बिट्टू नहीं आदी हैं।इस बात से मुझे कोई राहत नहीं मिली, मैंने उसे सीने से लगा लिया फिर देखा तो अब वह बिट्टू था। मेरे लिए दोनों बच्चे एक हो गए थे अपने पराये का भेद नहीं रहा था। रात भर दुखी होती रही कभी बिट्टू को याद करके तो कभी आदी की तकलीफ़ महसूस करके। मैं तीसरे दौर से गुजर रही थी जब इंसान इतना दुखी हो जाता है कि शरीर भी थक कर जवाब दे देता है, खाना-पीना बस नाम का रह जाता है,सुध ही नहीं रहती किसी बात की।
अगले दिन स्कूल भी नहीं गई, सुबह अस्पताल चली गई। आदी के पापा चित्रा को नाश्ता खिलाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह हाथ पर सिर टिका कर निढाल सी बैठी थी ‌। आदी के पापा को बस कुछ खरोचें आईं थीं, मुझे देखते ही बोले ," देखिए क्या हाल कर लिया है इसने। इसको संभालूं ,उधर घर पर बिटिया को छोड़कर आता हूं उसकी चिंता करूं या अस्पताल की भागदौड़ करूं, कैसे इतना सबकुछ देखूं समझ नहीं आता।"
तीन दिन में रिश्तेदारों और हितेषियों की छंटनी हो गई थी,अब अकेले जूझ रहे थे दोनों अपनी परेशानी से। मुझे देख कर चित्रा फफक-फफक कर रो पड़ी फिर मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कंधे पर सिर टिका कर खामोश बैठे गई। मेरे पास शब्द नहीं थे उसको सांत्वना देने के लिए, खोखले लग रहें थे,क्या कहुं सब ठीक हो जाएगा, पहले जैसा हो जाएगा।हम दोनों के बीच एक गहरा रिश्ता जुड़ गया था ' दुख' का ,जिसका कोई पता नहीं होता है , इसमें कुछ तेरा या मेरा नहीं था ‌।
शायद वर्माजी इस स्थिति के बारे में ही बात कर रहे थे,जब इंसान दूसरे की तकलीफ़ को महसूस कर सकें केवल अपनी ही परेशानी की चादर को ओढ़ कर न बैठा रहे,वह निजी संपत्ति न बन जाए कि बांटी भी न जा सके। थोड़ी देर बाद चित्रा फिर रोने लगी," कितना छोटा है कैसे काटेगा इतनी लंबी जिंदगी , अभी भोगा ही क्या है बिचारे ने। कितने सपने देखे थे उसके लिए, कैसे खुश हो कर भागता फिरता था, भगवान ने पंख ही काट दिया। "
धीरे धीरे उसका दुख गुस्से में बदलता जा रहा था।
"आज तक किसी को कभी तकलीफ नहीं दी , फिर नियती ने इतना बड़ा दुख सारी उम्र के लिए दे दिया। पता नहीं परमात्मा है भी की नहीं,आज के बाद मंदिर भी नहीं जाऊंगी कभी,जब उसने रक्षा  की ही नहीं तो क्यों पूजा करूं उसकी।वो गाड़ी वाला मेरे बच्चे की जिंदगी खराब करके मज़े से घूम रहा है, कीड़े पड़ेंगे उसके शरीर में…।" और भी न जाने वह क्या क्या बोलती रही। मुझे भी आलोक पर गुस्सा आ रहा था , एक बार भी फोन नहीं किया यह बताने के लिए बिट्टू कैसा है। अगर मुझसे तकलीफ थी तो एक बार बताते तो अगर मैं ध्यान नहीं देती तब मेरी गलती थी। मुझे क्या सपने आ रहे थे मेरे व्यवहार से किसको क्या परेशानी हो रही है।आज ही जाऊंगी और बिट्टू को जबरदस्ती अपने साथ लेकर आऊंगी,अब वह मेरे साथ रहेगा। आलोक को कोई हक नहीं है मां बेटे को अलग करने का।
आदी कमरे में आ गया था और मैं और चित्रा उसके पास बैठें थे । वह चुपचाप उदास लेटा हुआ था ,एक तरफ से मैंने और दूसरी तरफ से चित्रा ने उसका हाथ पकड़ रखा था ‌ तभी नर्स उसका खाना लेकर आई लेकिन उसने मुंह फेर लिया ‌, उसके लिए भी अपनी स्थिति को स्वीकारना मुश्किल हो रहा था।चित्रा रूआंसी होकर बोली ," कुछ तो खाले बेटा ताकत कहां से आयेगी।नर्स बड़ी हंसमुख और खुशमिजाज थी बोली," मेरा राजा बेटा मेरे हाथ से खाएगा, उसे अपनी नर्स आंटी बहुत अच्छी लगती हैं।"
मैं और चित्रा एक तरफ बैठ गये, चित्रा की आंखें भरी हुई थी लेकिन चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे। " कम से कम मेरा बेटा मेरे पास है अगर इसको कुछ हो जाता, परमात्मा इसको अपने पास बुला लेता तो मैं क्या करती। मैं हिम्मत से काम लूंगी, मिल कर हम सब स्थिती का सामना करेंगे , धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। मैं अपने बेटे की हिम्मत बनूंगी,इस संसार में हमसे भी ज्यादा दुखी और परेशान लोग हैं, वे भी तो जीते हैं।मेरा बेटा मेरे पास है यही बहुत है मेरे लिए।" वह बहुत देर तक अपने आप को समझाती रही, बेटा को अपने समीप देखकर उसने स्थिती को स्विकार लिया था।
वापस घर लौटते वक़्त मन बहुत शांत और हल्का लग रहा था। रास्ते में ही एक रेस्टोरेंट में बैठ कर डोसा खाया। आलोक और बिट्टू कहीं भी है सही सलामत है यह सब से बड़ी बात है। अगले दिन शिक्षक दिवस कार्यक्रम है,दो ढ़ाई घंटे लगेंगे, उसके बाद आलोक और बिट्टू से मिलूंगी। बहुत दिनों बाद आज निश्चिंतता के साथ नींद ली।
अगले दिन स्कूल में बहुत चहल-पहल थी, चारों तरफ बच्चें ही बच्चें नज़र आ रहे थे ,अति उत्साहित, उछलते कूदते शोर मचाते।आज मुझे उनका भागना दौड़ना, चीखना चिल्लाना बहुत सुखद लग रहा था।बस आदी की अनुपस्थिति अखर रही थी, लेकिन मैंने प्रण किया था मैं चित्रा के साथ मिलकर उसे इतना सक्षम बनाऊंगी कि वह भी इन बच्चों के साथ खड़ा होगा। यहां से निकल कर मैं सीधे अपने परिवार के पास जाऊंगी , मेरी गलती थी इसलिए आलोक से माफी मांगूंगी और अपने बिट्टू को ढेर सारा प्यार करूंगी। मैं जानती हूं आलोक मुझे अवश्य माफ़ कर देंगे,प्रेम ही इतना करते हैं ,तभी तो पांच साल कुछ नहीं कहा। आंखों में हमेशा प्रेम देखती थी लेकिन अनजान बनी रहती थी अब ऐसा नहीं होगा। आज बहुत स्वतंत्र महसूस कर रही थी,न जाने कौन-कौन सी बेड़ियों में अपने आप को जकड़ रखा था।

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